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[४] ममता : लालच
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प्रश्नकर्ता : वहाँ उसे कौन सा लालच होता है, जिस वजह से वह बिफरता है?
दादाश्री : सुख भोग लेने का। जब लोग भोगने नहीं देते, तब यों बिफरता है कि 'आत्महत्या कर लूँगा, मैं तो ऐसा कर लूँगा।' ।
प्रश्नकर्ता : लालच खास तौर पर विषय के लिए होता है? दादाश्री : विषय के लिए, और बाकी सब के लिए भी होता है।
प्रश्नकर्ता : इसके अलावा, मान, पूजे जाने की कामना ऐसा सब भी होता है?
दादाश्री : हाँ, वह भी होता है। और अगर (शराबी को कोई) ज़्यादा दारू नहीं पीने दे, तब भी ऐसा करता है।
प्रश्नकर्ता : लालच चीजों के लिए होता है या चीज़ों में से आने वाले सुख के लिए होता है ?
दादाश्री : सुख का ही है न! चीज़ का नहीं। चीज़ का तो क्या करना! चीज़ में से आने वाले सुख का लालच है।
प्रश्नकर्ता : लोभी को भी ऐसा ही होता है न?
दादाश्री : लोभी तो अच्छा होता है, लोभ तो उसे किसी खास प्रकार का ही होता है। और कोई झंझट नहीं। कई बार उसे स्त्री का झंझट नहीं भी होता, दूसरे सुखों का भी झंझट नहीं होता। सिर्फ इस लोभ का ही झंझट!
प्रश्नकर्ता : लोभी और लालची में से ज्यादा खराब किसका कहलाता है?
दादाश्री : लालची का! लालची को तो छूटने की बारी ही नहीं आती। सीधे लोगों को ऐसी-वैसी परेशानियाँ नहीं आतीं जबकि लालची इंसान की लाइफ अपमान भरी रहती है।