________________
२२२
आप्तवाणी-९
से वहाँ जाते हैं। सभी लोग भी कहते हैं, 'दादा, आज भोजन के लिए आए थे।' लेकिन कैसा नाटक किया! हीरा बा यह नहीं समझ पाते कि ये नाटक कर रहे हैं, फिर भी मैं कहता हूँ कि 'आपके बिना मुझे अच्छा नहीं लगता।' उन्हें पता नहीं चल पाता कि ये नाटक कर रहे हैं, यह तो आपसे कह रहा हूँ।
भोगवटा, लेकिन ममता रहित आप यहाँ दो दिन रहने के लिए आए, तो यह पलंग, कुरसी, गद्दे सभी चीजें भोगनी तो हैं, भोगने में हर्ज नहीं है, लेकिन ममता रहित भोगना है। उसी को भोगवटा (सुख या दुःख का असर, भुगतना) कहते हैं। अतः आप ममता रहित भोगते हो कि 'यह तो मेरा नहीं है।' अब यदि घर के मालिक को भी समझ में आ जाए कि यह सब उसका नहीं है, तो फिर उसका ममता रहित भोगवटा कितना सुंदर होगा! इसलिए फिर यों अच्छी सी तिपाई हो और कोई बच्चा उस पर कूदा और तिपाई बैठ गई, तो उसकी छाती नहीं बैठ जाएगी।
अतः यह सब 'ज्ञानीपुरुष' से समझ लेने की ज़रूरत है। वर्ना, अनंत जन्मों से भटक रहे हैं, भटकने में कुछ बाकी नहीं रखा, फिर भी सेन्ट्रल स्टेशन नहीं आया। यहाँ 'ज्ञानीपुरुष' मिल गए तो अब अंतिम स्टेशन आ गया।
उसे मोक्ष मिलता है अब यह 'सेन्ट्रल' स्टेशन ही है। अब यहाँ से और आगे नहीं जाना है, फिर से सफर नहीं करना है। कोई उपाधि (बाहर से आने वाला दु:ख
और परेशानी) नहीं। आधि नहीं, व्याधि नहीं, कुछ भी नहीं, वर्ना हर एक स्टेशन पर भटकना तो है ही न! और भटकते ही रहते हैं, इधर से उधर भटकते हैं और उधर से इधर भटकते हैं क्योंकि उसे यह लालच है 'यह चाहिए, वह चाहिए।' भगवान तो कहते हैं कि, 'जब तेरा लालच खत्म हो जाए तब मेरे पास आना। मेरे आश्रय में आ जा, तो तू और मैं एक ही हैं।' लेकिन उसे खुद को ये लालच है न! लालच हैं, इसलिए भटकन मौजूद है।