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[४] ममता : लालच
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आ जाते हैं। लोग भी कारीगर हैं न! क्योंकि उनके बीच रहकर आए हैं वे। खुद के रिश्तेदारों को पहचानते हैं ये लोग। लेकिन देखो पकड लेते हैं न ये लोग! बात तो समझनी पड़ेगी न?
ऐसा स्वभाव, फिर भी सूक्ष्म अवलोकन
और फिर, अपने यहाँ तो पहले इतनी छोटी-छोटी मटकियों में दही जमाते थे न। बिल्ली को दही-दूध खाने की आदत होती है न, तो बिल्ली क्या करती है ? वह मुँह डालती है चखने के लिए क्योंकि उसे सुगंध आई। सुगंध आई इसलिए समझ गई कि अंदर दही है। अब, छोड़ती तो नहीं है और आसपास कोई है नहीं। ज़ोर से मुँह डालते समय ताकत लगाती है, लेकिन फिर खींचते समय ताकत नहीं लग पाती इसलिए फिर मटकी को लेकर घूमती रहती है। मैंने देखा है ऐसी बिल्ली को। धन्य है। लोग दही खाते हैं, लेकिन तूने तो श्रीखंड खाया!
आपने ऐसा नहीं देखा? मैं तो शरारती था तो मुझे ऐसा सब मिल जाता था और न हो तो कोई मुझे दिखाने आता कि 'चलो हमारे यहाँ....' शरारती था न इसलिए! आपको शरारती बनना पड़ेगा उसके लिए। नहीं बनना पड़ेगा? मेरा कहना है कि शरारती स्वभाव के कारण यह सब देखने को मिला।
प्रश्नकर्ता : हम सभी मटकियाँ लेकर ही घूमते हैं न?
दादाश्री : अरे, लेकिन घूमते ही हैं न! मैं देखता हूँ न? कईयों की मटकियाँ तो मैंने फोड़ डाली थी। तब क्या करे बेचारा? कहाँ लेकर घूमता रहेगा? आँखों से दिखाई नहीं देता।
प्रश्नकर्ता : आपने ऐसे कितने लोगों की मटकियाँ फोड़ी हैं?
दादाश्री : नंबर तो मैं नहीं कहूँगा लेकिन फोड़ी ज़रूर हैं मैंने मटकियाँ और अब वे देखने लगे हैं। 'अब फिर से नहीं डालूँगा।' उन्हें ऐसा अनुभव हो गया। वह अनुभव हो जाने के बाद वे नहीं डालेंगे।