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[४] ममता : लालच
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वापस आएगी?' तब वह कहने लगा, 'मुझे अच्छा नहीं लगता, उसका क्या करूँ?' मैंने कहा, 'अरे, अभी तेरी पत्नी के बिना तुझे अच्छा नहीं लगता। अगर आज से ग्यारह साल पहले तू और तेरी वाइफ गाड़ी में मिले होते तो तू धक्का मारता न, कि खिसक यहाँ से? दस साल पहले विवाह किया था, तो विवाह करने के एकाध साल पहले ऐसा हो सकता था या नहीं हो सकता था?' तब वह मुझसे कहता है, 'हाँ, तब तो पहचान नहीं थी न!' मैंने कहा, 'यह तो, अगर विवाह के एकाध साल पहले ही मिली होती तो झगड़ा करता।' तब वह कहता है, 'इससे आप क्या कहना चाहते हैं ?' मैंने कहा, "तू शादी करने बैठा था न, तब कौन सा रोग घुस गया था तुझमें? तू शादी करने बैठा, उस घड़ी तूने उसे देखा। 'यह मेरी वाइफ' करके पहली बार लपेटा। उसने भी एक लपेट लगाई कि 'यह मेरा पति।' उसके पहले ऐसी लपेटें नहीं लगाई थीं। जब से विवाह किया, तभी से, दस सालों तक ममता की ये लपेटें मारते रहे। 'मेरी, मेरी, मेरी, मेरी!' तो इतना अधिक मानसिक इफेक्ट हो गया है, इतनी अधिक सायकोलॉजिकल असर हो गया है। एक ही बार बोले होते तो सायकोलॉजिकल हो जाता है, फिर यह तो है दस सालों की सायकोलॉजी।" तब वह मुझे कहता है, 'हाँ, हाँ, मुझे लगता है कि यह सायकोलॉजी हो गई है मेरी। अब कैसे जाएगी यह ?' मैंने कहा, 'नहीं है मेरी, नहीं है मेरी, बोल। जिस तरह बंधा था उसी तरह छोड़ दे न! यही उसका रास्ता है, और कोई रास्ता नहीं है।'
वास्तव में कोई बंधन है ही नहीं। यह तो सायकोलॉजिकल इफेक्ट ही हो जाता है। फिर जब पत्नी तीन बच्चे रखकर मर जाए तो रोता है। रोएगा नहीं बेचारा? लेकिन फिर इस तरह समझ में आया तो खुश हो गया। नहीं है पहचान! यह तो 'मेरी, मेरी' करके चिपट गया है यह सब। 'नहीं है मेरी, नहीं है मेरी' करेंगे तो खत्म हो जाएगा। उसकी हम गारन्टी देते हैं।
कोई भी चीज़ 'मेरी' करके रखी हो, उसे उखाड़नी हो तो 'नहीं है मेरी' कहने से उखड़ जाएगी और वहाँ पर फिर से चिपकाना हो तो 'नहीं है मेरी' करने के बजाय 'मेरी, मेरी' करोगे तो चिपकेगा। समझ