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आप्तवाणी-९
प्रश्नकर्ता : नहीं, कोई अभी तक साथ में नहीं ले गया।
दादाश्री : यदि साथ में ले जाने की शर्त नहीं है तो किसलिए यह 'हाय, हाय' करते हैं लोग? अतः अंदर से कुछ लेना मत, बहुत पसंद आए फिर भी। लोगे तो जोखिमदारी आएगी। लेकिन लोग जेब में डाल देते हैं और दूसरी तरफ से निकल जाते हैं। फिर जब वहाँ पर पकडे जाते हैं तब जोखिमदारी आती है इसलिए कुछ लेना मत, भोगना सबकुछ लेकिन 'मेरा' है, ऐसा मत रखना। संग्रहालय में 'मेरा' कहा जाता होगा? आपको कैसा लगता है ?
प्रश्नकर्ता : सही बात है।
दादाश्री : और जहाँ कलह है, वहीं पर ममत्व है। बाहर किसी के साथ कलह नहीं है। फिर कहेगा, 'मेरी पत्नी नालायक है।' तब फिर 'मेरी' किसलिए कह रहा है? फिर भी 'मेरापन' नहीं छोड़ता। नहीं छोड़ता, है न?
प्रश्नकर्ता : यह 'मेरी' कहना और 'नालायक' कहना, वे दोनों बातें एक साथ बोलते हैं, ऐसा किसी को विचार ही नहीं आएगा।
दादाश्री : हाँ, 'मेरी पत्नी नालायक है, डाइवोर्स लेने जैसी है' ऐसा भी कहता है। अब जो कुछ कहता है, उसका असर रहता है। हाँ, हर एक शब्द का असर रहता है। 'नहीं है मेरी' कहे, उसका भी असर रहता है और 'मेरी' कहे, उसका भी असर रहता है।
साइकोलॉजिकल इफेक्ट ही हमारा एक फ्रेन्ड था, उसकी शादी दस साल तक ही रही और फिर पत्नी मर गई तीन छोटे बच्चों को छोड़कर। तब मेरा फ्रेन्ड बहुत रो रहा था। लोग आश्वासन देने जाते हैं न, तो तब मैं भी आश्वासन देने गया था। मैंने कहा, 'किसलिए रो रहा है अब? उसका क्या अर्थ है ?' तब वह मुझसे कहने लगा, लेकिन ये तीन बच्चे.... मुझे तो उसके बगैर अच्छा नहीं लगता।' तब मैंने कहा, 'तू क्या करेगा लेकिन? अब वह