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आप्तवाणी-९
दादाश्री : नहीं, वह डायरेक्ट प्रकाश नहीं है लेकिन अंतरसूझ, वह तो एक प्रकार की कुदरती गिफ्ट है। उसी के आधार पर संसार में किस प्रकार से रहना और किस प्रकार से नहीं, वह सब चलाता रहता है।
प्रश्नकर्ता : सूझ में बुद्धि नहीं आती?
दादाश्री : नहीं। बुद्धि तो फायदा और नुकसान ही दिखाती है। बाकी कुछ नहीं दिखाती।
प्रश्नकर्ता : तो प्रज्ञा और सूझ में क्या फर्क है?
दादाश्री : सूझ तो हर एक में होती हैं। जानवरों में भी होती हैं। छोटा बच्चा होता है न, तो वह अपनी सूझ के अनुसार घूमता रहता है। पिल्लों में भी सूझ होती हैं, प्रज्ञा नहीं होती। प्रज्ञा, वह तो ज्ञान का प्रकाश होने के बाद उत्पन्न होने वाली चीज़ है।
प्रश्नकर्ता : सूझ से जो काम होते हैं, वे अच्छे माने जाते हैं न?
दादाश्री : सूझ के अनुसार काम करें न, तो वे काम अच्छी तरह से होते हैं।
प्रश्नकर्ता : कॉमनसेन्स और प्रज्ञा में क्या फर्क है?
दादाश्री : कॉमनसेन्स हमेशा संसार के हल ला देता है, संसार के कैसे भी ताले खोल देता हैं, लेकिन मोक्ष का एक भी ताला नहीं खोल सकता। जबकि प्रज्ञा ज्ञान मिले बिना उत्पन्न नहीं हो सकती। या फिर समकित हो जाए, तब प्रज्ञा की शुरुआत होती है।
सभी 'तालों' की चाबी 'एक' अब यह 'ज्ञान' मिलने के बाद आपको शुद्ध व्यवहार के लिए क्या चाहिए? कम्पलीट कॉमनसेन्स चाहिए। स्थिरता ऐसी चाहिए, गंभीरता इतनी ही चाहिए। सभी गुण उत्पन्न होने चाहिए न! वह अगर कच्चा रह जाएगा तो चलेगा नहीं और बाहर के लोग एक्सेप्ट भी नहीं करेंगे न ! ताला बंद हो जाए तो चाबी लगानी पड़ेगी न? एक ही चाबी से सभी