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आप्तवाणी-९
वही लक्षण ममता के ममता तो उसे कहते हैं कि जिसमें जी उलझ जाए। जैसे हम कहे कि 'यह मेरा' तो उसके अंदर जी उलझ जाता है वापस और वह चीज़ टूट जाए तो क्या करता है ? अपने ये प्याले फूट जाएँ तो परेशानी ! अरे, कईं तो इतने छोटे-छोटे बच्चे आते हैं तब मैं उन्हें चाय पीकर रखा हुआ कप दिखाकर कहता हूँ, 'बेटा, ये चाय का प्याला डाल दे बाहर।' तब बच्चा क्या कहता है ? कि 'इसे डालते होंगे?' ऐसा करके बच्चा कंधे उचकाता है। इससे ममता समझ में नहीं आती? तो फिर वह कंधे क्यों उचकाता है ? फिर यदि मैं बच्चे से कहूँ कि, 'दादाजी के बूट फेंक दे।' तब वह कहता है, 'नहीं फेंक सकते।' देखो, ये समझदार! बहुत पक्के हैं। यह सब तो अहंकार के कारण उल्टा हो गया है। हम् हम् हम् हम्!
प्रश्नकर्ता : यह अहंकार ज्ञान द्वारा मिट सकता होगा न?
दादाश्री : अहंकार अर्थात् अज्ञानता! अहंकार का अर्थ ही अज्ञानता! और ज्ञान अर्थात् निअहंकारिता। अतः ज्ञान से किसी का अहंकार नहीं मिट सके, ऐसा नहीं है। ज्ञान ही निअहंकारिता और अज्ञान अर्थात् अहंकार, ये दो ही स्टेशन हैं !
ममता का विस्तार वर्ना जगत् तो ममता के पौधे को ही पानी पिलाता रहता है। पूरा जगत् क्या करता है? ममता के पौधे को बड़ा करता है कि 'यह हमारा, यह हमारा, यह हमारा,' तब उसे पूछे कि, 'कौन सा तेरा नहीं है ?' तब कहेगा, 'यह हमारा नहीं है, यह हमारे भाई का है।' फिर कुछ सालों बाद फिर कहता है, 'भाई ने हमारा दबा लिया है।' अरे, कितना दबाया है? तब कहेगा, 'इतनी, डेढ़ हाथ जितनी ज़मीन दबा ली है।' तब वह फिर कोर्ट में जाता है। वकील से कहें कि, 'साहब, इतना सारा दबा लिया।' वह वापस 'अंतिम स्टेशन' तक चला जाता है। और फिर बेटा भी लड़ता है और बेटा भी कहता है कि 'इतना दबा लिया है!'