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[४] ममता : लालच
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आखिर में तो यह शरीर भी अपना नहीं रहेगा, तो पत्नी कब अपनी बनेगी? पत्नी अपनी बनती है क्या? आज इस पत्नी पर ममता करते रहें और परसों पत्नी ने डाइवोर्स ले लिया तो? और इस शरीर में तो कोई झंझट ही नहीं न!
प्रश्नकर्ता : लेकिन इस शरीर पर अधिक ममता रखने जैसा क्या है?
दादाश्री : तो बाहर भी ममता रखने जैसा क्या है ? यानी कि कुछ भी आपका नहीं है। जो आपका है, वह आपके साथ आएगा। नियम ऐसा है कि जो आपकी चीज़ है वह आपके साथ आती ही है, नियम से आती ही है। जो आपकी नहीं है, वे चीजें आपके साथ नहीं आने वाली। तो जो आपकी नहीं हैं, उन पर ममता रखने का क्या अर्थ है? वह मीनिंगलेस है न!
प्रश्नकर्ता : लेकिन शरीर पर तो कितनी ममता रहती है ?
दादाश्री : शरीर में तो बहुत चीजें हैं। ये तो बत्तीस दांत हैं। यह जीभ और सबकुछ देखो न, ऐसे पूरा दिन काम करती रहती है, लेकिन देखो थोड़ी सी भी कुचली जाती है कभी? अतः ममता को इस देह जितना बढ़ाएँ न, तो बहुत हो गया।
प्रश्नकर्ता : इतनी ममता रहने से क्या फायदा?
दादाश्री : इस देह की ममता रखते हो न, तो इस देह का एडजस्टमेन्ट होता है, हर एक चीज़ की व्यवस्था होती है, उसके नियम होते हैं, कि आँख को क्या-क्या चाहिए, वह सब उसे मिल जाता है। कान को क्या चाहिए, पेट को क्या चाहिए, शरीर के हर एक अंग को उसकी ज़रूरत की चीजें मिल जाती हैं।
प्रश्नकर्ता : सिर्फ शरीर पर ममता आ गई तो?
दादाश्री : शरीर पर सारी ममता आ गई तो चैन से चार बिस्तर बिछाकर सो जाना है लेकिन ये तो चैन से सोते भी नहीं।