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आप्तवाणी-९
प्रश्नकर्ता : लेकिन लोगों की ममता तो बहुत विस्तृत होती है
न?
दादाश्री : विस्तार करते हैं लेकिन किसी को क्या फर्क पड़ता है? हर एक की इच्छा तो होती ही है न? यह किसान है, तो हर एक किसान को कितनी ज़मीन रखने की इच्छा होती होगी? और ज़मीन तो सीमित ही है न? और ज़मीन के लिए लोगों की इच्छा असीमित हैं। वह कहेगा 'मुझे पाँच सौ बीघा चाहिए।' दूसरा कहेगा 'मुझे सौ बीघा चाहिए।' तीसरा कहेगा 'मुझे सौ बीघा चाहिए।' तो इसका मेल ही कैसे पड़ेगा? ऐसा हो नहीं पाता, और मार खा-खाकर लोगों का दम निकल जाता है।
मिटाओ ममता समझ से एक व्यक्ति का खुद का बंगला है, बहुत ही पसंद आए वैसा बंगला है। उस बंगले को बेचने की बात निकली तब वह रोने लगा। वह कहता है, 'यह बंगला बेचना मत, कुछ भी हो जाए।' इसके बावजूद पैसों की तकलीफ के कारण बंगला बेचना पड़ा और दस्तावेज हो जाने के बाद वह बंगला जल गया। तब किसी ने उस व्यक्ति से पूछा कि, 'अरे, तेरा वह बंगला जल गया?' तब वह कहता है, 'मुझे क्या लेनादेना?' 'लेकिन अरे, वह तेरा बंगला था न!' तब वह कहता है, लेकिन वह मैंने बेच दिया।'
अब इतना अच्छा बंगला जिसमें कि वह रहता था, लेकिन दूसरे दिन उसकी ममता क्यों खत्म हो गई?
प्रश्नकर्ता : बंगला बिक गया इसलिए? दादाश्री : लेकिन उसकी ममता क्यों खत्म हो गई? प्रश्नकर्ता : उसने अपनी ममता छोड़ दी इसलिए खत्म हो गई।
दादाश्री : छोड़ तो नहीं दी, लेकिन मजबूरन छोड़ देनी पड़ी न! दूसरे दिन अगर बंगले में आग लग जाए तो बल्कि वह हँसता है, कि