________________
[४] ममता : लालच
२१३
'चलो शांति हो गई!' यानी एक ही दिन में 'मेरापन' चला गया? और उसे बदले में क्या दिया? कागज़ दिए? अरे, 'मेरापन' कागज़ों से जाता है? हाँ, चला गया, वह देखा न! और कागज़ भी चले जाएँगे या नहीं जाएँगे? वे भी चले जाएँगे। यदि कागज़ों से 'मेरापन' चला जाता है, तो अगर उसे हम समझ से निकाल दें तो क्या बुरा? जो कागज़ों से चला जाता है उसे समझ से निकाल दें तो क्या बुरा है? और समझ से निकल सकता है या नहीं निकल सकता? फिर घर जल जाए, तब भी रोएगा नहीं न?
प्रश्नकर्ता : लेकिन कोर्ट उन दस्तावेज को इनवैलिड (अमान्य) कर दे तो वापस रोने लगेगा।
दादाश्री : हाँ, तो वापस रोने लगेगा। प्रश्नकर्ता : आज तक तो ममता खत्म नहीं हुई, ऐसा क्यों?
दादाश्री : वह तो उसका तरीका जाने बिना खत्म नहीं होती न! और अंत में वह बीस लाख से बनाया हुआ बंगला क्या कहता है ? 'हे नगीनदास सेठ, या तो आप चले जाओगे या फिर मैं चला जाऊँगा।' तब नगीनदास सेठ कहते हैं, 'तू कहाँ जाएगा?' तब बंगला कहता है, 'आपका दिवालिया निकलेगा तब मुझे चले जाना पड़ेगा। वर्ना फिर भी आप तो चले ही जाओगे। मैं तो रहूँगा।' अब अगर बंगला ऐसा कहे तब शरमिंदगी होगी या नहीं होगी?
यानी ममता का विस्तार किया है इन लोगों ने, गलत विस्तार। मकान का विस्तार क्यों नहीं करते कि 'यह मेरा इतना ही है ?' और इस ममता का विस्तार पूरी दुनिया पर करता है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन जिसका ममता का विस्तार बड़ा है, उसे संसार की दृष्टि से बड़ा आदमी कहते हैं।
दादाश्री : हाँ, बड़ा आदमी कहते हैं लेकिन उसे दुःख भी उतना ही रहता है न! यह तो सभी ने झूठी ममता का विस्तार किया है।