________________
७४
आप्तवाणी-९
इसलिए अब (हमें) नींद नहीं आएगी लेकिन इन लोगों को तो सो जाने दो बेचारों को!' जो नहीं जानते वे खर्राटे लेने लगते हैं। जो जानकार है उसे तो नींद आएगी ही कैसे? क्योंकि उसे ज्ञान हो गया है कि इतना बड़ा साँप था, तो उसका अब क्या हो सकता है ?
अतः शास्त्र क्या कहते हैं ? कि साँप अंदर गया वह ज्ञान आपको हुआ था। जब ऐसा ज्ञान हो जाएगा कि साँप निकल गया है तभी आपका छुटकारा है। भले ही साँप निकल जाए, लेकिन अगर ऐसा ज्ञान नहीं हो जाता कि 'निकल गया,' तो आपके मन में शंका रहेगी और नींद नहीं आएगी। इधर-उधर करवट बदलते रहोगे। हम कहें, 'क्यों करवटें बदल रहे हो?' हाँ, यानी कि अंदर शंका रहती है कि 'साँप आ जाएगा तो? आ जाएगा तो?' यदि साँप आ जाता तो क्या ले जाता? जेब में से कुछ ले जाता?
प्रश्नकर्ता : जेब में से लेकर वह क्या करेगा? दादाश्री : तब फिर और क्या करेगा? प्रश्नकर्ता : डंक मारेगा।
दादाश्री : किसलिए? वह नियमवाला होगा या अनियमवाला? इस दुनिया में एक भी चीज़ बगैर नियम के एक क्षणभर भी नहीं होती। जो भी होता है वह नियमपूर्वक ही है इसलिए उसमें शंका मत करना। जो कुछ होता है वह कभी भी नियम से बाहर होता ही नहीं है। इसलिए उसमें शंका मत करना। जो हो चुका है वह नियमपूर्वक ही था। अब वहाँ पर अपना ज्ञान क्या कहता है? कि “साँप घुस गया तो कोई बात नहीं, 'व्यवस्थित' है। सो जा न चुपचाप!" अपना यह ज्ञान तो उसे निःशंक सुला देता है!
इस तरह तो हम बहुत जगहों पर सो चुके हैं। क्योंकि हमारा सारा काम जंगल में ही था न, तो ऐसे हम कई जगह पर सो जाते थे। वह साँप इस तरफ सो रहा होता था, हमें दिखता भी था। फिर जब सुबह में उठते तब हम देखते थे कि 'वह साँप अभी तक यहीं पर सो रहा है,