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[३] कॉमनसेन्स : वेल्डिंग
करो। कोई व्यक्ति कुछ भी बोल सकता है, यह उसके दिमाग़ पर आधारित है न! और आपका कुछ पुण्य होगा तभी बोलेगा न! वर्ना अगर पुण्य न हो तो कोई कुछ बोल सकता है ?
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जहाँ स्वार्थ, वहाँ पूर्णता नहीं
प्रश्नकर्ता : जिसमें कॉमनसेन्स है उसे खुद को कुछ भी नहीं होता है, लेकिन उसके निमित्त से सामने वाले को दुःख हो सकता है ?
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दादाश्री : वह तो हो सकता है न! सामने वाला कमज़ोर हो तो दुःख हो सकता है । इस दुनिया में कमज़ोर इंसान को दुःख होता है जितनी कमज़ोरी उतना ही उसे दुःख । अगर कमज़ोर को दुःख हो तो उसमें बलवान क्या करे ? यदि कोई राक्षस जैसा, जिसके शरीर का डील डौल वैसा हो, ऐसा व्यक्ति जा रहा हो, उसे देखकर लोग घबराकर भाग जाएँ तो उसमें वह क्या करे ? उसका क्या गुनाह है ?
प्रश्नकर्ता : उसमें उसका खुद का व्यवहार, वाणी ऐसे होते हैं कि सामने वाले को दुःख नहीं हो, राज़ी - खुशी से सब काम करवा ले, उसके पास ऐसी गिफ्ट होती है न ?
दादाश्री : वह सब होता है, लेकिन मूलतः वे स्वार्थमय परिणाम होते हैं, वे अच्छे नहीं है। उससे कम्पलीट कॉमनसेन्स नहीं आ पाता । जहाँ ज़रा सा भी स्वार्थ हो न, वहाँ पूर्ण कॉमनसेन्स नहीं है। स्वार्थ नहीं हो तब सही है । बाद में वह सामने वाले को राज़ी रखे तो वह बगैर स्वार्थ के राज़ी रखता है, उसे दुःख नहीं हो इसलिए । बाकी, जगत् तो अपने ही मतलब के लिए राज़ी रखता है, इसलिए उनका कॉमनसेन्स पूर्ण नहीं हो पाता, क्योंकि उसका उपयोग मतलब के लिए हुआ !
सूझ उससे अलग
प्रश्नकर्ता : क्या कॉमनसेन्स का मतलब यह है कि किसी व्यवहारिक काम को कम समय में स्पीडी कर लाए, और किसी के साथ टकराव टाल दे ? वह है ?