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[३] कॉमनसेन्स : वेल्डिंग
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__ तो रुके स्वच्छंद प्रश्नकर्ता : व्यवहार में जहाँ-जहाँ डिसिज़न लेना हो, वहाँ व्यवहारिक सूझ काम में आती है या नहीं?
दादाश्री : हाँ, सूझ ही काम में आती है। लेकिन अगर सूझ नहीं हो तो कहाँ से लाए? हाँ, वर्ना फिर अपना विश्वासपात्र हो तो उसे पूछकर काम करना चाहिए। पूछकर काम करने जैसा तो कुछ भी नहीं है इस दुनिया में! पूछकर करे कि, 'साहब, पेशाब करने जाऊँ ?' तब वह कहेगा, 'जाओ।' फिर उसका गुनाह नहीं है न! फिर भले ही वहाँ दस मिनट तक बीडियाँ पी हों। लेकिन यों ही पूछे बगैर जाए तब पकड़ेंगे उसे। 'क्यों बीड़ी पीने गया था?' कहेगा। इसलिए पूछकर जाओ।
प्रश्नकर्ता : पूछकर जाने में स्वच्छंद नामक भाग पूरा टूट जाता है न?
दादाश्री : हाँ, इसीलिए, स्वच्छंद निकालने के लिए ही यह पूछकर करना चाहिए न ! इसीलिए गुरु बनाने के लिए कहा है न! खुद की अक्ल से नहीं चलना है न! और गुरु कहे वह सोलह आना।
हम इनसे कहें कि, 'इस तरफ दौड़,' तब फिर वह पूछने के लिए रुकता ही नहीं। उसे कहा जाता है कि स्वच्छंद चला गया। और किसी
और से पूछने जाए कि 'ये दादा कह रहे हैं उस तरफ दौडूं या नहीं दौडूं?' तो वह स्वच्छंद कहलाएगा।
हाँ, व्यवहारिक बातों में मुझसे कुछ पूछने की ज़रूरत नहीं है। उसमें आप फादर से पूछो, या दूसरे किसी से, जो उम्र में आपसे बड़े हों, अनुभवी हों, उनसे पूछो। व्यवहारिक बातों में सभी व्यवहारिक व्यक्ति जो बड़ी उम्र के होते हैं न, वे सब समझा देते हैं।
प्रश्नकर्ता : लेकिन ऐसे व्यवहार में, 'समय' पर तो कॉमनसेन्स ही एप्लिकेबल होता है न?
दादाश्री : लेकिन कॉमनसेन्स लाए कहाँ से वह ? वह तो अपनी