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[२] उद्वेग : शंका : नोंध
की शंका होती है कि, 'हमारे पार्टनर रोज़ लगभग पाँच-दस रुपये घर ले जाते हैं।' उसे ऐसी शंका रहती है। पैसों के प्रति उसे प्रियता है न! यानी हमारे पार्टनर पैसे ले जाते हैं, उसे ऐसी शंका रहती है। एक ही दिन वैसी शंका की, तो वह शंका कहलाती है और बार-बार शंका करे, तो वह आशंका कहलाती है।
मोह से मूर्छित दशा लड़कियों पर शंका नहीं होती क्योंकि लड़कियों पर मोह है न! जहाँ पर मोह होता है, वहाँ उसकी भूल का पता नहीं चलता। मोह से मार खाता है न जगत्। सभी माँ-बाप ऐसा कहते हैं कि, 'हमारी बेटियाँ अच्छी हैं।' यदि ऐसा है तब तो सत्युग ही चल रहा है ऐसा कहा जाएगा न? सब माँ-बाप ऐसा ही कहते हैं न? जिन्हें पूछे वे ऐसा ही कहते हैं तो फिर सत्युग ही चल रहा है न बाहर! तब वे वापस कहते हैं, 'नहीं, लोगों की लड़कियाँ बिगड़ गई हैं।' ऐसा भी कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : अभी तो उसकी बेटी के बारे में कुछ कहने जाएँ तो हमें दबोच लेंगे।
दादाश्री : ऐसा तो कहना ही नहीं चाहिए। दबोच लेंगे और गालियाँ भी देंगे। किसी को कुछ कह ही नहीं सकते। इतना अच्छा है कि हर एक माँ-बाप को उनके बेटे-बेटियों पर राग होता है अतः राग के कारण उनके दोष दिखाई ही नहीं देते जबकि दूसरे की बेटियों के सारे दोष देख सकते हैं। अपनी बेटी के दोष नहीं दिखाई देते इतना अच्छा है न, उससे तो शांति रहती है और फिर आगे की बात बाद में देख लेंगे।
ऐसी टीका नहीं करनी चाहिए एक व्यक्ति ने मुझसे कहा, 'मेरी बेटियाँ तो बहुत समझदार हैं।' मैंने कहा, 'हाँ, अच्छा है।' फिर वह भाई दूसरी लड़कियों की टीका (टीका-टिप्पणी) करने लगे। तब मैंने उनसे कहा, 'टीका किसलिए करते हो लोगों की? आप लोगों की टीका करोगे तो लोग आपकी भी टीका