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आप्तवाणी-९
भी मेल-मिलाप नहीं रहता। कॉमनसेन्स नहीं है इसीलिए गड़बड़ होती है न! उसकी शादी कर दी जाए तो क्या दशा होगी? आज उसकी वाइफ आई, रात को मिले, एक घंटे में तो दोनों अलग। 'हाउ टु डील' सब से पहले तो वही नहीं आता। बिगिनिंग कैसे की जाए, वह भी नहीं आता है। कला वगैरह की ज़रूरत है या नहीं?
प्रश्नकर्ता : है ही न! उसके बिना तो चलेगा ही नहीं।
दादाश्री : पति जो है, वह कॉमनसेन्स वाला चाहिए न? यह तो अगर कभी पत्नी से भूल हो जाए, तो उसके साथ झगड़ा करने बैठ जाता है ! अरे, झगड़ा करने के लिए भूल नहीं हुई!
कोई कॉमनसेन्स वाला हो, वह तो पनवाड़ी के साथ भी समझदारी से निकाल कर लेता है। लड़ने वाला इंसान कौन होता है? जिसे 'सेन्स' नहीं हो, वह इंसान हर कहीं सब बिगाड़ देता है। कौन से संयोगों में बेचारे ने भूल की होगी, वह जाने बिना हम झगड़ा करें, तो उससे फायदा होगा क्या?
प्रश्नकर्ता : नहीं होगा। नुकसान पहुँचाएगा।
दादाश्री : यानी जिसमें कॉमनसेन्स नहीं होता वह लड़ता है और लड़े तो हो चुका! उसके और आपके बीच टूट गया।
अतः खुद के अहंकार को इतना अधिक डाउन ले जाना कि सब के साथ में मिलजुलकर रहा जा सके। अब अहंकार में क्या कोई पेच होता है कि ऐसे घुमाकर उसे डाउन किया जा सके?! यानी समझदारी से होना चाहिए या नासमझी से होना चाहिए? और समझदारी का अहंकार हो जाए तो उसमें भी हर्ज नहीं है, लेकिन यह तो नासमझी का अंहकार है। उसे क्या कहेंगे?
मिलनसारिता से बढ़ता है कॉमनसेन्स इसलिए मैं कहता हूँ न, कि इन सब के साथ बैठे तो उन लोगों को अपने पर प्रेम उत्पन्न होगा। और दूसरी बातचीत चलेगी, अपनी