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आप्तवाणी-९
हो तभी से काम नहीं हो पाता। शंका रहती है, वह तो बुद्धि का तूफान
और ऐसा कुछ भी होता नहीं है। जिसे शंका होती है न, उसे सभी झंझट खड़े होते हैं। कर्म राजा का नियम ऐसा है कि जिसे शंका होती है, वहीं पर वे जाते हैं ! और जो ध्यान नहीं देते, उनके वहाँ तो वे खड़े भी नहीं रहते। इसलिए मन मज़बूत रखना चाहिए।
यह प्रिकॉशन है या दखल? शंका तो दुःख भी बहुत देती है, भयंकर दुःख देती है। वह शंका कब निकलेगी?! कई बार हज़ार-दो हज़ार के ज़ेवर, घड़ी वगैरह किसी ने रास्ते में मारकर सब लूट लिया हो, तब फिर यदि कपड़े, घड़ी, ज़ेवर वगैरह पहनकर फिर से बाहर जाना हो तो उस घड़ी शंका उत्पन्न होती है कि अगर आज (लुटेरा) मिल जाएगा तो? अब न्याय क्या कहता है? यदि उसे मिलना होगा तो उससे बच नहीं पाएगा, फिर तू क्यों बिना बात के शंका करता है?!
प्रश्नकर्ता : वह शंका उत्पन्न हुई, अब वहाँ पर उसके लिए कोई 'प्रिकॉशन' वगैरह लेने की कोई ज़रूरत नहीं रहती?
दादाश्री : 'प्रिकॉशन' लेने से ही बिगड़ता है न! अज्ञानी के लिए ठीक है। यदि इस किनारे पर आना हो तो इस किनारे का सबकुछ एक्ज़ेक्ट करो। उस किनारे पर रहना हो तो उस किनारे का एक्जेक्ट रखो। यदि शंका करनी हो तो उस किनारे पर रहो। बीच रास्ते में रहने का कोई अर्थ ही नहीं है न!
प्रश्नकर्ता : लेकिन कोई 'डेन्जर सिग्नल' आए तब उसमें शंका न रखें, लेकिन उसके लिए सहज भाव से 'प्रिकॉशन' लेने चाहिए न?
दादाश्री : 'प्रिकॉशन' आपसे लिया ही नहीं जा सकता। 'प्रिकॉशन' लेने की शक्ति ही नहीं है। वह शक्ति है ही नहीं, उसे 'एडोप्ट' करने का क्या अर्थ है?
प्रश्नकर्ता : हमारे में 'प्रिकॉशन' लेने की शक्ति है ही नहीं?