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आप्तवाणी-९
लेकिन नोंध लेना ही सब से बड़ा गुनाह है। अभिप्राय को तो चलाया जा सकता है।
___अभिप्राय से तो मन बना है। उसका निकाल फिर हमें खुद को ही कर देना है लेकिन यह नोंध तो वापस संसार ही खड़ा करती है। नोंध में खोया हुआ कभी वापस नहीं आता। नोंध में खो गया वह वापस नहीं आता।
प्रश्नकर्ता : यह जो नोंध ली जाती है, वह पहले ली जाती है और फिर रूपक में बोलकर उसका अभिप्राय देते हैं?
दादाश्री : नोंध ली इसलिए फिर उस 'साइड' चला। देह की 'साइड' चला सबकुछ, आत्मा वाली 'साइड' बंद हो गई, इसलिए इस पक्ष वाला हो गया। तब फिर वह आत्मा बंद हो गया, उस घड़ी आत्मा नहीं रहता।
प्रश्नकर्ता : यानी जब नोंध लेते हैं, उस घड़ी अभिप्राय है या...
दादाश्री : अभिप्राय में हर्ज नहीं है। अभिप्राय इतना बड़ा जोखिम नहीं है। वह मन बनाता है बस उतना ही, लेकिन जोखिम तो सारा नोंध का है।
प्रश्नकर्ता : अभिप्राय और नोंध के बीच का फर्क और भी 'डिटेल' में समझना है।
दादाश्री : अभिप्राय थोड़ा बहुत रहा होगा तो हर्ज नहीं है। नोंध तो एक 'सेन्ट' भी नहीं रहनी चाहिए। नोंध अर्थात् पुद्गल। नोंध तो खास पुद्गल पक्षी ही है। नोंध रखने से फिर था, वैसे का वैसा ही बन जाता है। जिसने 'ज्ञान' नहीं लिया हो और लिया हो, उनमें कोई फर्क ही नहीं रहे, वह कहलाती है नोंध।
प्रश्नकर्ता : लेकिन किसी भी चीज़ की नोंध लेंगे तभी अभिप्राय बैठेगा न?
दादाश्री : अभिप्राय तो उसके पीछे है ही। लेकिन अभिप्राय होगा