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[३] कॉमनसेन्स : वेल्डिंग
'कॉमनसेन्स' की कमी यह वाणी राग-द्वेष रहित है। वीतराग वाणी है। इस वाणी को सुने और यदि धारण कर ले तो उसका कल्याण ही हो जाए। इस वाणी को यदि धारण कर ले न तो सारा रोग जुलाब की तरह निकल जाए! अवगुणों के जो परमाणु हैं न, वे सभी जुलाब की तरह निकल जाएँ!
सभी बातों का मैं सार कहता हूँ, और यह सब पूरा अर्क ही है। यह सारा हमारे अनुभव का निचोड़ है। वर्ना पुस्तक में कहीं लिखा जाता होगा कि आज 'कॉमनसेन्स' किसी में है ही नहीं! वर्ना ऐसा पढ़कर तुरंत ही लोग यहाँ पर 'अप्लाइ' करने आएंगे कि 'साहब, मुझमें कॉमनसेन्स तो है।' यदि कभी ऐसा कोई आ जाए न, तो मैं उसे कहूँगा कि, 'चल, देखते हैं तेरे घर आता हूँ, पंद्रह दिन रहता हूँ!' बड़े आए 'कॉमनसेन्स' वाले!
यदि ऐसा नहीं कहें न, तो इंसान खुद अपने आपको न जाने क्या मानकर घूमता है कि अपने जैसा तो कोई है ही नहीं।
'एवरीव्हेर एप्लिकेबल' 'कॉमनसेन्स' क्या है ? 'एवरीव्हेर एप्लिकेबल, थ्योरीटिकल एज़ वेल एज़ प्रैक्टिकल'! ऐसा 'कॉमनसेन्स' तो हमने किसी में देखा ही नहीं है। कॉमनसेन्स अर्थात् वह ऐसी चाबी है कि एवरीव्हेर एप्लिकेबल होती है, उससे कैसे भी जंग लगे हुए ताले खुल जाते हैं। वर्ना यह तो अच्छे, नये ताले भी बंद हो जाते हैं ! बेकार से बेकार व्यक्ति का ताला अपने