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[२] उद्वेग : शंका : नोंध
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तक उन दो भाइयों के नाम हो, तब तक पूरे 'प्लॉट' में जो कुछ होता है, वह दोनों का नुकसान कहलाता है लेकिन फिर अगर दोनों में बँटवारा कर दें कि इस तरफ का चंदूभाई का और उस तरफ का दूसरे भाई का तो बँटवारा हो जाने के बाद उस दूसरे भाग के लिए आप ज़िम्मेदार नहीं हो। इसी प्रकार से आत्मा और अनात्मा का बँटवारा हुआ है। उसमें बीच में 'लाइन ऑफ डिमार्केशन' मैंने डाली हुई है, 'एक्जेक्ट' डाली हुई है। ऐसा विज्ञान इस काल में उत्पन्न हुआ है, उसका लाभ हम सब को उठा लेना है।
आत्मा और अनात्मा, दोनों के बीच में 'लाइन ऑफ डिमार्केशन' डाल दी इसलिए अब 'चंदूभाई' के साथ 'आपका' संबंध पड़ोसी जैसा रहा। अब पड़ोसी जो गुनाह करे, उसके गुनहगार आप नहीं हो। मालिकीपना नहीं है इसलिए गुनहगार भी नहीं है। मालिकीपना हो तभी तक गुनाह माना जाता है। मालिकीपना गया कि गुनाह नहीं रहता।
हम किसी से पूछे कि, 'आप नीचे देखकर क्यों चल रहे हो?' तब वे कहेंगे, 'नहीं देखेंगे तो पैर के नीचे जीव-जंतु कुचल जाएँगे न!' 'तो क्या ये पैर आपके हैं ?' ऐसा पूछे, तो कहेंगे, 'हाँ, भाई, पैर तो मेरा ही है न!' ऐसा कहते हैं या नहीं कहते? यानी 'ये पैर आपका, तो पैर के नीचे कोई जीव कुचला गया तो उसके जोखिमदार आप!' और इस 'ज्ञान' के बाद आपको तो 'यह देह मेरी नहीं है' ऐसा ज्ञान हाज़िर रहता है। यानी कि आपने मालिकीपना छोड़ दिया है। यहाँ पर यह 'ज्ञान' देते समय मैं सारा मालिकीपना ले लेता हूँ अतः उसके बाद यदि आप मालिकीपना वापस ले लोगे तो उसकी जोखिमदारी आएगी। अतः यदि आप मालिकीपना वापस नहीं लोगे न, तो 'एक्जेक्ट' रहेगा। निरंतर भगवान महावीर जैसी दशा में रखे, ऐसा यह विज्ञान है!
अतः यह बाहर का, शरीर का यह भाग जो कुछ करे उसमें आपको दखलंदाजी नहीं करनी है तो आप नाम मात्र को भी जोखिमदार नहीं रहोगे। और कुछ कर भी नहीं सकते। 'खुद' कुछ कर सकता है, ऐसा 'खुद' मानता है, वही नासमझी है, उससे अगला जन्म बिगाड़ता है।