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आप्तवाणी-९
करवाता हूँ ? नोंध बंद कर दो आप। घर में रहो ज़रूर लेकिन बगैर नोंध के! निकाल दो वह सब। यह उसी की दखल है। नोंध नहीं रखनी चाहिए। वह तो वहाँ संसार में रखनी थी, वह यहाँ पर नहीं रखनी है। जो यहाँ पर रखना है, वह वहाँ नहीं रखना है।
सहमत नहीं, तो छूट गए प्रश्नकर्ता : मोक्ष में जाना हो तो यह नोंध करने की प्रकृति हो चुकी हो तो वहाँ पर क्या करें?
दादाश्री : 'चंदूभाई' से कहना कि 'अब नोंध मत करना।'
प्रश्नकर्ता : लेकिन यह जो नोंध करने की प्रकृति है, उसका क्या करें?
दादाश्री : प्रकृति करे तो 'हमें' हर्ज नहीं है न! यह तो 'आप' और 'वह', ऐसे दोनों सहमत होकर करते हैं । 'अपनी' सहमति नहीं रहे तो, फिर वह नोंध रहेगी ही नहीं न! वह करेगा ही नहीं फिर, ऊब जाएगा। अगर आप नहीं करोगे तो सामने वाला नोंध करेगा ही नहीं। मेरी दुकान में से आप माल ले जाओ उसकी मैं नोंध नहीं रखू, तो आप भी नहीं रखोगे। आप ही कहोगे, 'यह नोंध नहीं रखते, तो मैं किसलिए रखू?' ऐसा नियम है न!
प्रश्नकर्ता : नोंध छोड़ना तब आसान हो जाता है कि जब आपकी 'जलेबी' चखने को मिले, तब।
दादाश्री : हाँ, वर्ना तो नहीं छूटता। प्रश्नकर्ता : वर्ना तब तक नोंध छोड़ना बहुत कठिन लगता है।
दादाश्री : अरे, लोग तो कहते हैं 'मर जाऊँगा, लेकिन नोंध नहीं छोडूंगा, पहाड़ पर से कूद जाऊँगा, लेकिन नोंध नहीं छोडूंगा', क्योंकि उसे ऐसा लगता है कि 'मैं उसी के आधार पर जी रहा हूँ।' हम पूछे, 'आपका भोजन ले लेंगे तो चलेगा?' तब वह कहेगा, 'नहीं, भोजन तो