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[२] उद्वेग : शंका : नोंध
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प्रश्नकर्ता : संसार में इस प्रकार से देखने की आदत हो चुकी है कि यह बहुत सतर्क व्यक्ति है, और यह असतर्क देखकर लगता है कि यह क्या हुआ?
दादाश्री : असतर्कता दिखाई दे, इसका मतलब यही है कि 'संसार के सभी आधार गिर चुके हैं।' संसार के आधार टूट जाएँगे तब क्या संसार रहेगा? संसार के आधार टूट जाएँगे, तो संसार रहेगा नहीं न! संसार गिर जाएगा न! लोग सोच में पड़ जाएँगे कि यह क्या हुआ! लेकिन ऐसी असतर्कता होगी तभी मोक्ष में जा सकेंगे। वर्ना यों ही तो, वही के वही कपड़े और वही का वही वेष और ऐसे सतर्कता, वैसे सतर्कता, इसके पैसों के बारे में सतर्कता, तो उससे तो कहीं दिन बदलते होंगे? कोई भी नोंध नहीं चाहिए। यह तो, आपसे यदि कल कुछ कह गया हो तो सारी नोंध होती है आपके पास।
__अब लोग क्या कहते हैं कि, 'ये ही मोक्ष में जा सकते हैं। ऐसी सतर्कता रहेगी तभी मोक्ष में जा पाएँगे।' और मैं कहता हूँ कि जो सतर्क नहीं रहेगा, वही मोक्ष में जाएगा। दुकान का दिवालिया निकलेगा और हल आ जाएगा। यदि मोक्ष में जाना हो तो यह दिवालिया निकालना पड़ेगा। यहाँ पर सतर्क रहना है, और मोक्ष में जाना है, ये दोनों एक साथ नहीं हो सकता। जो नोंध नहीं करते, ऐसे कितने लोग होंगे? ये सब मुमुक्षु, मोक्ष की इच्छा वाले हैं, उनमें से?
प्रश्नकर्ता : मोक्ष की इच्छा तो शब्दों में ही रह गई है!
दादाश्री : इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि अध्यात्म में कौन आया है? आत्मसन्मुख कौन हुआ है ? सभी इच्छाएँ छोड़कर हाथ खाली कर दिए हों और बिल्कुल भी नोंध नहीं हो, वह आत्मसन्मुख हुआ है। संसार में सतर्क रहना और आत्मसन्मुख होना, दोनों एक साथ नहीं हो सकता। इसलिए भगवान ने क्या कहा है कि घर से यहाँ पर आ जा, यदि मोक्ष में जाना हो तो! किसलिए? हाँ, वर्ना (क्रमिक मार्ग में) घर में रहना, नहीं चलेगा।
अपने यहाँ ऐसा है कि घर में रखकर करना है। अतः मैं क्या