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न !
आप्तवाणी - ९
प्रश्नकर्ता : वह तो अच्छा चलेगा न ! लेकिन ऐसा होना चाहिए
दादाश्री : वह तो फिर हो जाएगा ! वर्ना इस हिन्दुसतान की प्रजा, वहम से, शंका से, डर से मरी हुई प्रजा है ! यानी यह शंका शब्द तो मैं पूरी दुनिया से निकाल देना चाहता हूँ। यह शंका शब्द निकाल देने जैसा है। ‘वर्ल्ड' में इसके जैसा कोई भूत नहीं है और इसी वजह से काफी कुछ लोग दुःखी हैं, शंका से ही दुःखी हैं।
किसलिए वहम रखना है फिर ? यह वहम तो रखने जैसा है ही नहीं, दुनिया में ! किसी भी प्रकार का वहम रखने जैसा नहीं है । वहम 'हेल्पिंग प्रोब्लेम' नहीं ( परेशानी में मदद नहीं करता) है । वहम, वह नुकसानदायक है ‘प्रोब्लेम' है । जो है उससे अधिक नुकसान करेगा और जो नुकसान होना है तो उसमें कोई रुकावट नहीं आएगी इसलिए वहम को छोड़ दो। मैं तो इतना ही कहता आया हूँ, और काफी कुछ लोगों को छुड़वा दिया है!
अब यह सारा मेरा अनुभवसहित ज्ञान है । यह तो मेरे ही अनुभव रखे हैं सभी, और वह भी 'अप्रोपिएट' (उपयुक्त) ! ये मेरी हर क्षण की जागृति के अनुभव रखे हैं और यह सिर्फ अभी की लाइफ का नहीं है, लेकिन अनंत जन्मों की लाइफ का है ! और वह भी फिर मौलिक है । शास्त्रों में न मिलें, तब भी हर्ज नहीं, लेकिन मौलिक है !
'डीलिंग' पुद्गल की, 'खुद' वीतराग
प्रश्नकर्ता : वीतराग कौन हो सकता है और वीतराग की कैसी दशा होती है उसके वर्णन शास्त्र में पढ़े हैं, लेकिन देहधारी वीतराग देखने को नहीं मिले....
दादाश्री : नहीं मिलते। वीतरागों के तो दर्शन तक करने को नहीं मिलते। इस काल में तो मैं फेल हुआ हूँ, तभी तो यहाँ पर रुका हुआ हूँ इसलिए इन सभी को दर्शन करने को मिल गए। नहीं तो ये केवलज्ञान के बिल्कुल ही नज़दीक पहुँचे हुए हैं इनके दर्शन भी करने को नहीं