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आप्तवाणी-९
तक? इससे तो बल्कि दुःख बढ़े ! इसलिए नोंध ही नहीं रखनी चाहिए। तूने देखा नहीं कि ये 'दादाजी' नोंध नहीं रखते?
प्रश्नकर्ता : वह आज ही अनुभव में आया। नहीं तो आप नोंध नहीं रखते उसका पता ही नहीं चलता न!
दादाश्री : लेकिन तू देखता होगा न, कि 'दादाजी' कोई नोंध नहीं रखते?
प्रश्नकर्ता : हाँ, नोंध नहीं रखते, लेकिन आपको याद सबकुछ रहता है न!
दादाश्री : हाँ । याद रहता है, लेकिन नोंध नहीं होती। प्रश्नकर्ता : उसमें क्या फर्क है, दादा?
दादाश्री : नोंध रखना अर्थात् अंदर उसके लिए बैर रखता है और याद यानी हम भी समझते हैं कि इसमें इतनी-इतनी कमज़ोरियाँ हैं, इतना ही! इतनी कमज़ोरी है, अतः उतना हम आशीर्वाद देने के लिए याद रखते हैं। वर्ना, हमें कोई नोंध नहीं रहती। यदि हमें नोंध रहेगी तो हमें खुद के लिए बैर रखने की वृत्तियाँ होने लगेगी इसलिए मैं नोंध नहीं रखता
और इसीलिए तो तू भी मेरी नोंध नहीं रखता न! 'दादाजी' तुझे डाँट दें तब भी तू नोंध नहीं रखता।
प्रश्नकर्ता : दादाजी डाँट दें तब भी प्रेम ही रहता है।
दादाश्री : हाँ, इसलिए नोंध नहीं रखनी चाहिए। नोंध नहीं रखोगे तो आधा दुःख तो चला जाएगा, यों ही! ।
जगत् के लोग नोंध रखते होंगे? धंधा ही यह है, नोंध रखने का ही धंधा। 'मेरा ऐसा कर गए थे और वैसा कर गए थे' कहेंगे।
___ मैं नोंध नहीं रखता हैं इसलिए आप मेरी नोंध नहीं रखते। आप नोंध रखोगे तो सामने वाला नोंध रखेगा ही। आप यदि मेरी दुकान से कुछ ले जाओ और तब मैं नोंध रखू, तो आपकी दुकान में आप नोंध