________________
[२] उद्वेग : शंका : नोंध
१५७
इस देह की पंचायत में भी पड़े कि 'इसका ऐसा हो गया, ऐसा हो गया, तो 'टेन्शन' खड़ा हो जाएगा न!
प्रश्नकर्ता : 'जहाँ प्रेम है, वहाँ नोंध नहीं होती।' यह बहुत बड़ी बात निकली।
दादाश्री : हाँ, जिस प्रेम में नोंध हो, वहाँ प्रेम नहीं है ! इस जगत् का प्रेम तो नोंध वाला है। 'आज मुझे ऐसा कह गया,' ऐसा कहे, तो फिर वह कैसा प्रेम? यदि प्रेम है तो नोंध नहीं चाहिए। नहीं तो आसक्ति हो जाएगी। जो प्रेम कम-ज़्यादा होता है उसे आसक्ति कहते हैं। तो यह जगत् तो नोंध रखे बिना रहता ही नहीं न! भले ही मुँह पर नहीं कहे, लेकिन मन में कहेंगे, 'मुझे परसों कह गए थे।' वह अपने मन में रखता है न? इसलिए नोंध तो है न उसके पास? जिसके पास नोंध नहीं है, उनका प्रेम सच्चा! हमारे पास नोंध बही है ही नहीं, तो फिर खाता (अकाउन्ट) कहाँ से होगा?! नोंध बही होगी तो खाता होगा। अब आप नोंध बही फेंक देना। उसे किसी दूसरे सेठ को दे देना। नोंध बही रखने जैसी नहीं है!
प्रश्नकर्ता : यदि नोंध रखे कि 'तूने मुझे ऐसा कहा, तूने ऐसा कहा।' उससे फिर वापस प्रेम टूट जाता है।
दादाश्री : हाँ, लेकिन नोंध रखे बगैर नहीं रहता। पत्नी भी रखती है न? तेरी पत्नी नहीं रखती?
प्रश्नकर्ता : दादा, वह तो सभी रखते हैं, लेकिन प्रतिक्रमण करके ज्ञान द्वारा इस नोंध को पौंछा जा सकता है न?
दादाश्री : उसे कैसे भी पौंछने जाओगे न, फिर भी कुछ नहीं होगा। नोंध रखी तभी से, पौंछने से कुछ नहीं होगा। नोंध ढीली हो सकती है, लेकिन वह बोले बगैर रहते नहीं है न? ये भाई चाहे कुछ भी करें या फिर आपमें कितना भी बदलाव आ जाए, फिर भी हम उसकी नोंध नहीं रखते। तो हमें किसी प्रकार की दखल ही नहीं है न! क्या तूने देखा है? 'दादा' को कभी तेरे बारे में नोंध रही है, ऐसा?