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आप्तवाणी-९
जहाँ प्रेम है, वहाँ पर नोंध नहीं | और जो प्रेम उत्पन्न होता है, वह प्रेम भी ऐसा होना चाहिए कि घटे-बढ़े नहीं। दो-चार गालियाँ दे जाए न, फिर भी घटे नहीं, तब वह प्रेम कहलाएगा और जो घट जाए, बढ़ जाए वह आसक्ति कहलाती है। वही का वही प्रेम यदि कम-ज़्यादा हो तो आसक्ति हो गई ! जैसे कि स्वास्थ्य होता है, तो वही का वही स्वास्थ्य यदि कम-ज्यादा हो तो रोग कहलाता है ! उसी प्रकार से वही का वही प्रेम यदि बढ़े या घटे तो आसक्ति! बेटा कमाकर आए तो वाह-वाह, वापस 'वाह भाई वाह' करता है। वही का वही बेटा दस सालों बाद खोकर आए तो कहेगा कि, 'पागल था, मैं कह-कहकर थक गया और मेरा दिमाग़ पागल हो गया।' जाने दे तेरा प्रेम, इसके बजाय अपने 'कॉलेज' का अभिप्राय अच्छा है कि हमेशा रहता है अपने पास।
प्रश्नकर्ता : पति-पत्नि के बीच भी ऐसा ही होता है न? 'मैं तुझे चाहता हूँ, मैं तुझसे प्रेम करता हूँ' कहते हैं लेकिन फिर वापस झगड़ते
हैं।
दादाश्री : इसी को आसक्ति कहते हैं ! ठौर नहीं और ठिकाना नहीं, बड़े आए चाहने वाले! सचमुच में चाहने वाला तो मरते दम तक हाथ नहीं छोड़ता। बाकी, होता सबकुछ है पर, उसकी नोंध नहीं लेता। जहाँ प्रेम है, वहाँ नोंध होती ही नहीं। नोंध बही रखो और प्रेम रखो. दोनों साथ में नहीं हो सकते। अगर नोंध बही रखें कि 'ऐसा किया और वैसा किया' तो वहाँ पर प्रेम नहीं होता।
हमारे साथ ये इतने सारे लोग हैं, लेकिन किसी की नोंध नहीं। किसी से चाहे कुछ भी हो जाए फिर भी नोंध नहीं। बाहर भी नोंध नहीं
और अंदर भी नोंध नहीं। वर्ना हमें 'टेन्शन' नहीं रहता होगा तो भी खड़ा हो जाएगा। यह तो रात को भी, जिस घड़ी आओ उस घड़ी हम 'टेन्शन' रहित ही रहते हैं न! इसलिए झंझट ही नहीं न! हमारी तबियत अंदर नरम हो जाए तो कोई कहेगा, ‘दादा, तो हँस रहे हैं!' अरे, 'टेन्शन' नहीं है इसलिए हँस रहे हैं ! यानी किसी की पंचायत में नहीं पड़ना है। अगर