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आप्तवाणी-९
अपने आप हाज़िर हो जाए, ऐसा होता ही नहीं। यह तो अनुभव कहलाता है। आत्मा प्राप्त हो जाए, उसे अनुभव कहते हैं, आत्मा का लक्ष्य बैठ गया, उसे अनुभव कहते हैं क्योंकि खुद के जागने से पहले तो वह आत्मा हाज़िर हो जाता है।
___अतः जिसकी शंका गई उसे संपूर्ण आत्मा प्राप्त हो गया। वर्ना 'आत्मा कैसा है' किसी का वह संदेह जा सके, ऐसा है ही नहीं। आत्मा है' वह संदेह शायद चला जाए, लेकिन 'आत्मा कैसा है' ऐसा वह संदेह नहीं जाता। वह चीज़ बहुत गहरी है।
जहाँ शंका है, वहाँ संताप खड़ा होता है। एक क्षण के लिए भी शंका नहीं हो, उसे कहते हैं आत्मा! यानी किसी भी प्रकार की शंका नहीं रहती।
वह भूल ढूँढनी है ___ शंका जाए तो हल आ जाए। अब, शंका का खत्म हो जाना, वह तो खुद के हिसाब में होना चाहिए न? सामने वाले की शंका खत्म हो गई, इसलिए क्या अपनी शंका भी खत्म हो गई? क्योंकि सभी को एक सरीखी शंका नहीं होती। इसलिए खुद अपने आपसे पूछना चाहिए कि, 'किस-किस बारे में शंका है ?' तब कहेगा, 'नहीं, अब कोई शंका नहीं है।' और जिसे अभी कुछ-कुछ शंका हो, वह फिर यहाँ थोड़े समय तक बैठा रहे, और हमसे पूछे-करे तो फिर वह शंका चली जाएगी और शंका गई तो समझो हल आ गया।
प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं न, कि 'तू कौन है?' तब मुझे 'मैं शुद्धात्मा हूँ,' उस पर शंका रहती है।
दादाश्री : 'मैं शुद्धात्मा हूँ' आपको वह शंका रहती है, तो जो वह शंका करता है, वही शुद्धात्मा है। आपको' यहाँ नहीं बैठना है, उस जगह पर बैठना है अब, कौन शंका कर रहा है, वह ढूँढ निकालना है कि यह तो अपनी ही भूल है।