________________
१२०
आप्तवाणी - ९
बीज में से.... जंगल
मैं क्या कह रहा हूँ कि शंका, वह तो भूत है। उस डायन को चिपटाना हो तो चिपटाना, अपने को डायन पसंद हो तो चिपटाना लेकिन यदि शंका होने लगे तो उसे क्या कहना चाहिए ? कि 'दादा के फॉलोअर बने हो और अब किस चीज़ की शंका रखते हो ? आपको शर्म नहीं आती ? दादा किसी पर शंका नहीं रखते, तो आप क्यों शंका रखते हो ? वह बंद कर दो। दादा इस उम्र में शंका नहीं रखते हैं, फिर आप तो जवान हो।' ऐसा कहेंगे तो शंका बंद हो जाएगी।
हमने जिंदगी में शंका का नाम तक निकाल दिया है। हमें किसी पर भी शंका आती ही नहीं । वह सेफसाइड है या नहीं ?
प्रश्नकर्ता : बहुत बड़ी 'सेफसाइड । '
दादाश्री : शंका का नाम तक नहीं । जेब में से रुपये निकालते हुए देख लिया हो तो भी उस पर शंका नहीं और दूसरे भयंकर गुनाह किए हों तो भी शंका- वंका, राम तेरी माया ! जानते ज़रूर हैं, जानकारी में होता है। हमारे ज्ञान में होता है कि 'दिस इज दिस, दिस इज़ देट । ' लेकिन शंका नहीं ।
शंका वह तो भयंकर दुःखदाई है और उससे नये प्रकार का संसार उत्पन्न हो जाता है, ऐसा है । बबूल का बीज हो न, तब तो सिर्फ बबूल ही उगता है और एक बड़ का बीज हो न, तो उसमें से सिर्फ बड़ ही उगता है लेकिन शंका नाम का बीज ऐसा है कि इस बीज से तो सत्रह सौ तरह की वनस्पतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। एक ही बीज में से सत्रह सौ तरह की वनस्पतियाँ उग जाती हैं, उस बीज को रखा ही कैसे जाए ? यह शंका नाम का बीज, उसे सिर्फ हम निकाल चुके हैं लेकिन आपको तो सहज रूप से कभी शंका हो जाती है । नहीं ?
इसलिए हमारे जैसा रखना । शंका निकाल देना। चाहे किसी भी बारे में हो, नज़रों से देखी हुई बात हो न, तब भी शंका नहीं । जान लेना है, जान ज़रूर लेना। जानने में पाप नहीं है। आँखों से देखा हुआ भी