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[२] उद्वेग : शंका : नोंध
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प्रश्नकर्ता : बहुत हितकारी होती है लेकिन अगर शंका करवाए तो उसे निकाल ही देना है।
दादाश्री : जागृति को निकाल देना है? जागृति निकाल देनी है या वह शंका निकाल देनी है?
प्रश्नकर्ता : शंका ही निकाल देनी है।
दादाश्री : हाँ, जागृति तो रहने देनी है न?! हमने तो शंका की सब जड़ें निकाल दी हैं। आपने जड़मूल से खोदकर निकाल दी है या रहने दी है कुछ-कुछ?
प्रश्नकर्ता : अंदर शंका की बहुत शोध चलती रहती थी। दादाश्री : लेकिन उसे जड़मूल से निकाल नहीं दिया अभी तक? प्रश्नकर्ता : आज दादा की तरफ से निमित्त मिला है।
दादाश्री : हाँ, ऐसा कुछ होगा तभी न! वर्ना बात निकलती नहीं न! अपने यहाँ तो, मैं थोड़े ही किसी खास टाइम पर यह बात निकालता हूँ ? 'एविडन्स' मिलें, तभी निकलती है न! इनको कुछ समाधान होना होगा, उनको कुछ समाधान होना होगा, आपको थोड़ा बहुत समाधान होना होगा, तभी निकली होगी न! ।
वर्ना शंका आए तो पूरी रात नींद नहीं आती।।
प्रश्नकर्ता : अंदर कचोटती रहती है। इतनी मार खाई तब भी वापस नहीं जाती।
दादाश्री : क्या फायदा मिला? प्रश्नकर्ता : कुछ नहीं।
दादाश्री : इसके बावजूद भी रहती है ? तो किसलिए यह बात निकली? मुझे पता नहीं था कि इतना सारा होगा! यह 'ज्ञान' दिया हुआ है इसलिए लगा कि आप ऐसी छोटी-मोटी चीजें तो निकाल दोगे, और अपने आप ही निकाल दोगे और जो चुभने वाली चीज़ चुभे, आपको