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आप्तवाणी - ९
नहीं है, वह 'है' नहीं बन सकता। इसलिए जो 'है' वह है, उसमें तू कुछ इधर-उधर करने जाएगा तो भी 'है' ही और जो 'नहीं है' उसमें इधर-उधर करने जाएगा तो भी 'नहीं' ही है इसलिए निःशंक हो जाओ। इस 'ज्ञान' के बाद अब आप आत्मा में निःशंक हो गए कि हमें जो यह लक्ष्य बैठा है, वही आत्मा है और बाकी सबकुछ निकाली बातें हैं !
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इस प्रकार ‘व्यवस्थित' का उपयोग करेंगे न, तो कोई भी भाव उत्पन्न ही नहीं होंगे। 'जैसा होना होगा वैसा होगा' ऐसा नहीं बोलना चाहिए। जो ‘है' वह है और जो 'नहीं है' वह नहीं है । ऐसा यदि समझ जाए न तो शंका नहीं रहेगी और शंका हो तो मिटा देना वापस, कि भाई, जो ‘है' वह है, इसमें शंका किसलिए ? जो 'नहीं है' वह नहीं है, उसमें शंका किसलिए ? सोचता है कि 'आएगा या नहीं आएगा, आएगा या नहीं आएगा ? नुकसान रुकेगा या नहीं रुकेगा ?' अरे, जो 'नहीं है ' वह नहीं है। जो रुकना नहीं है, तो 'नहीं है' वह रुकेगा ही नहीं और रुकना है तो रुक जाएगा। तो उसके लिए क्या झंझट करनी ? इसलिए जो 'नहीं' वह नहीं है और जो 'है' वह है, इसलिए शंका रखने का कोई कारण ही नहीं है I
'व्यवस्थित' के अर्थ में ऐसा नहीं कह सकते कि 'जो होना होगा वह होगा, कोई हर्ज नहीं है । जैसा होना होगा वैसा ही होगा, ' ऐसा नहीं कह सकते। वह तो एकांतिक वाक्य कहलाएगा। उसे दुरुपयोग करना कहा जाएगा। ये मन, बुद्धि वगैरह अज्ञ स्वभाव के हैं और जब तक विरोधी हैं, तब तक हमें जागृत रहना पड़ेगा न !
प्रश्नकर्ता : हमें भविष्यकाल की चिंता होने लगे कि 'यह ऐसा हो जाएगा, उससे तो ऐसा हो तो अच्छा ।' तो फिर ऐसे समय में ऐसा नहीं कह सकते कि ‘व्यवस्थित में होना होगा वैसा होगा, तू किसलिए चिंता करता है ? '
दादाश्री : 'व्यवस्थित' में जो होना होगा वैसा ही होगा, ऐसा कहने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन जो 'है' वह है और 'नहीं है' वह नहीं है कहा तो उसके संबंध में सोचने का रहा ही नहीं न ! जो 'नहीं