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आप्तवाणी-९
अब विश्वास हो गया है न, कि व्यवस्थित से बाहर कोई कुछ नहीं कर सकता?
मोक्ष में जाना हो, तो... ___ इसलिए शंका तो किसी पर भी नहीं करनी चाहिए। आप घर पहुँचो तब आपकी बहन से कोई दूसरा व्यक्ति बात कर रहा हो, तब भी शंका नहीं करनी चाहिए। शंका तो सब से अधिक दुःख देती है और वह पूरे ज्ञान को ही खत्म कर देती है, फेंक देती है। व्यवस्थित से बाहर कुछ भी नहीं होनेवाला और उस घड़ी आप बहन से कहो, 'यहाँ आ बहन, मुझे खाना दे दे।' इस तरह दोनों को अलग किया जा सकता है लेकिन शंका तो कभी भी नहीं करनी चाहिए। शंका से दुःख ही खड़ा होता है। व्यवस्थित में जो होना है वह होगा, लेकिन शंका नहीं रखनी है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन शंका भी उदयकर्म के कारण ही होती होगी न?
दादाश्री : शंका करना उदयकर्म नहीं कहलाता। शंका रखने से तो तेरा भाव बिगड़ जाता है, तूने उसमें हाथ डाला, इसलिए वह दुःख ही देगी। शंका कभी भी नहीं करनी चाहिए।
आपकी बहन के साथ कोई बात कर रहा हो, लेकिन अब आपको तो मोक्ष में जाना है तो आपको शंका में नहीं पड़ना चाहिए। यदि आपको मोक्ष में जाना है तो! क्योंकि एक जन्म में तो व्यवस्थित से बाहर कुछ भी नहीं होगा, आप जागृत रहोगे तब भी नहीं होगा और अजागृत रहोगे तब भी नहीं होगा। अगर आप ज्ञानी हो तब भी बदलाव नहीं होगा और अज्ञानी हो तब भी बदलाव नहीं होगा। इसलिए शंका रखने का कोई कारण नहीं है।
प्रश्नकर्ता : क्योंकि कोई फर्क पड़ेगा ही नहीं।
दादाश्री : हाँ, फर्क नहीं पड़ेगा और बहुत नुकसान है इस शंका में तो।
प्रश्नकर्ता : लेकिन इस 'ज्ञान' के बाद तो 'चार्ज' होगा ही नहीं न?