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आप्तवाणी-९
होनेवाला नहीं है। रुपये वापस आ जाएँगे।' तब फिर वैसा मान लेता है। उसकी खुद की भी स्टेबिलिटी नहीं है। वह ज्योतिषी हमारे बारे में क्या बता सकेगा? उसे उसका खुद का ही देखना नहीं आता, फिर वह हमारा क्या बताएगा?! उसके पैरों में आधे चप्पल हैं, पीछे से थोडे घिस चके हैं। फिर भी ऐसे चप्पल पहनता है तो हम नहीं समझ जाएँ कि 'अरे, तुझे तेरा ही ज्योतिष देखना नहीं आता, तो तू मेरा क्या देखनेवाला था?' लेकिन ये तो लालची लोगों को सभी फँसाते हैं। यहाँ के ज्योतिषी तो कहाँ तक पहुँच गए हैं ?! बड़े साहब वगैरह सभी मानते हैं। अरे, मानना चाहिए क्या? ज्योतिषियों को घर में घुसने देना चाहिए? घर में घुसने दिया तो घर में रोना-धोना मच जाएगा इसलिए उन्हें घुसने ही नहीं देना चाहिए। हाँ, उन्हें कहना कि 'ज्योतिष देखने के लिए नहीं, यों ही आना। मेरे यहाँ आकर ज्योतिष मत देखना किसी का, कपाल मत देखना कि इसकी रेखाएँ ऐसी हैं, जैसा है वैसा रहने देना। हमें इतने दूध की खीर बनानी है उसमें छींटे मत डालना। हाँ, यह तो किसी को पता नहीं चलता कि क्या होना है, तो तुझे किस तरह पता चला?!'
निःशंकता, वहाँ कार्य सिद्धि अतः वहम होने से दुःख पड़ता है। अगर बहीखाते देखने नहीं आएँ तो, होता है साठ लाख का फायदा और दिखाई देता है चालीस लाख का नुकसान। फिर उसे दुःख ही होता रहेगा न, ऐसा है यह जगत्। देखना नहीं आया उसी का यह दुःख है। नहीं तो दुःख है ही नहीं इस जगत् में।।
यह तो निरी शंका के ही वातावरण में जी रहा है पूरा जगत्, कि "ऐसा हो जाएगा या वैसा हो जाएगा।' कुछ भी नहीं होनेवाला। बेकार ही क्यों घबराता है? सोया रह न, सीधी तरह से। बिना काम के इधरउधर चक्कर लगाता रहता है। तूने खुद अपने आप पर श्रद्धा रखी है वह गलत है सारी, 'हंड्रेड परसेन्ट'! यानी कि कुछ भी नहीं होनेवाला। लेकिन देखो न घबराहट, घबराहट, तड़फड़ाहट, तरफड़ाहट! जैसे साथ में ले जानेवाला है न थोड़ा बहुत?!
यह तो, पूरे दिन 'क्या होगा, क्या होगा?' इस तरह घबराता रहता