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आप्तवाणी - ९
अब बेटियों की जब ऐसी कोई बात सुनने में या देखने में आए और शंका हो तब असल मज़ा आता है। अगर आकर मुझसे पूछे तो मैं तुरंत कह दूँगा कि 'शंका निकाल दे ।' यह तो तूने देखा इसलिए शंका हुई और नहीं देखा होता तो? देखने से ही शंका हुई है तो, 'नहीं देखा, ' ऐसा कहकर करेक्ट कर ले न ! अन्डरग्राउन्ड में तो यह सब है ही लेकिन उसके मन में ऐसा होता है कि, 'ऐसा होगा तो ?' तब फिर वह पकड़ लेता है उसे । फिर भूत छोड़ता नहीं है उसे, पूरी रात नहीं छोड़ता। रात को भी नहीं छोड़ता, एक-एक महीने तक नहीं छोड़ता । इसलिए शंका रखना गलत है।
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शंका ? नहीं, संभाल रखो
अब चार बेटियों का बाप सलाह लेने आया था, वह कह रहा था, 'मेरी ये चारों बेटियाँ कॉलेज में पढ़ने जाती हैं, तो उन पर शंका तो होगी ही न ! तो मुझे क्या करना चाहिए उन चारों लड़कियों का? लड़कियाँ बिगड़ जाएँगी तो मैं क्या करूँगा ?' मैंने कहा, 'लेकिन सिर्फ शंका करने से नहीं सुधरेंगी।' अरे, शंका मत करना । घर आएँ, तब घर पर बैठे-बैठे उनके साथ कुछ अच्छी बातचीत करना, फ्रेन्डशिप करना । उनसे आनंद हो ऐसी बातें करनी चाहिए और ऐसा मत करना कि तू सिर्फ धंधे में, पैसे में ही पड़ा रहे। पहले बेटियों को संभाल । उनके साथ फ्रेन्डशिप कर। उनके साथ नाश्ता कर, ज़रा चाय पी, वह प्रेम जैसा है । यह तो, ऊपर-ऊपर से प्रेम रखते हो, इसलिए फिर वह बाहर प्रेम ढूँढती हैं।
फिर मैंने कहा कि, और फिर भी आपकी बेटियों को किसी से प्रेम हो जाए, और वह फिर रात को साढ़े ग्यारह बजे घर लौटे तो क्या आप उसे निकाल दोगे ? तब उसने कहा, 'हाँ, मैं तो गेटआउट कर दूँगा । उसे घर में घुसने ही नहीं दूँगा।' मैंने कहा, 'ऐसा मत करना । वह किसके पास जाएगी रात को ? वह किसके यहाँ आसरा लेगी ?' उससे कहना, 'आ, बैठ ! सो जा ।' वह नियम है न कि नुकसान तो हुआ लेकिन अब इससे अधिक नुकसान न हो, उसके लिए संभाल लेना चाहिए। बेटी कुछ नुकसान करके आई और हम वापस उसे बाहर निकाल दें तो हो चुका