________________
आप्तवाणी - ९
में से, वह उगे तभी से बंद कर देनी चाहिए, पर्दा गिरा देना चाहिए । वर्ना पेड़ बन जाएगा उसका तो !
८८
शंका का असर
शंका का अर्थ क्या है ? जो खीर लोगों को खिलानी है उस खीर में एक सेर नमक डालना, वह शंका है । फिर क्या होगा ? खीर फट जाएगी। इतनी सी ज़िम्मेदारी का तो लोगों को ध्यान नहीं है। हम तो शंका से बहुत दूर रहते हैं । हमें सभी प्रकार के विचार आते हैं। मन है तो विचार तो आएँगे, लेकिन शंका नहीं होती । मैं शंका की दृष्टि से किसी को देखूँ तो दूसरे दिन उसका मन मुझसे अलग ही पड़ जाएगा !
I
यानी कि किसी भी वस्तु में शंका हो, तो वह शंका नहीं रखनी चाहिए। हमें जागृत रहना चाहिए, लेकिन सामने वाले पर शंका नहीं रखनी चाहिए। शंका हमें मार डालती है। सामने वाले का जो होना होगा, वह होगा लेकिन हमें तो वह शंका मार ही डालेगी। क्योंकि वह शंका तो मरते दम तक इंसान को नहीं छोड़ती । शंका होती है, तब इंसान का वज़न बढ़ता है क्या? इंसान जैसे मुर्दे की तरह जी रहा हो, ऐसा हो जाता है।
तो
अतः किसी भी बात में अगर शंका नहीं करे तो उत्तम है । शंका जड़मूल से निकाल देनी चाहिए । व्यवहार में भी शंका निकाल देनी है। शंका ‘हेल्प' नहीं करती, नुकसान ही करती है। रूठने से भी फायदा नहीं होता, नुकसान ही होता है। कितने ही शब्द एकांतिक रूप से नुकसान पहुँचाते हैं। एकांतिक रूप का मतलब क्या है? लाभालाभ हों तब तो बात ठीक है लेकिन इससे तो सिर्फ अलाभ (नुकसान) ही है। ऐसे गुण ! हटा दें तो अच्छा।
बुद्धि बिगाड़े संसार
प्रश्नकर्ता : लेकिन अधिक बुद्धिशाली लोगों को क्यों अधिक शंका होती है?