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[२] उद्वेग : शंका : नोंध
मोक्ष में जानेवालों को देहाध्यास छूटे तो समझना कि मोक्ष में जाने की तैयारी हुई। देहाध्यास मतलब देह में आत्मबुद्धि ! वह सब देहाध्यास कहलाता है। कोई गालियाँ दे, मारे, अपनी 'वाइफ' को अपने सामने ही उठाकर ले जाए, तब भी अंदर राग-द्वेष नहीं हों तो समझना कि वीतरागों का मार्ग पकड़ा है ! लोग तो फिर खुद की कमज़ोरी के कारण उठाकर ले जाने देते हैं न! उठानेवाला बलवान हो तो 'वाइफ' को उठाकर ले जाने देते हैं न!
यानी इनमें से कुछ भी खुद का है ही नहीं। यह सब पराया है। इसलिए अगर व्यवहार में रहना हो तो व्यवहार में मज़बूत बनो और मोक्ष में जाना हो तो मोक्ष के लायक बनो! जहाँ पर यह देह भी खुद का नहीं है वहाँ पर स्त्री अपनी कैसे हो सकती है? बेटी अपनी कैसे हो सकती है? यानी आपको तो हर प्रकार से सोच लेना चाहिए कि 'स्त्री को उठाकर ले जाएँ तो क्या करूँगा?'
जो होना है, उसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता, 'व्यवस्थित' ऐसा ही है। इसलिए डरना मत। इसी वजह से ऐसा कहा है कि 'व्यवस्थित' है! यदि नहीं देखा हो तो तब कहेगा, 'मेरी पत्नी' और देख लिया तो छटपटाहट! अरे, पहले से ऐसा ही था। इसमें नया ढूँढना ही मत।
प्रश्नकर्ता : लेकिन 'दादा' ने बहुत ढील दे दी है।
दादाश्री : मेरा कहना यह है कि दुषमकाल में अगर हम झूठी आशा रखें तो उसका कोई अर्थ ही नहीं है न! और इस सरकार ने भी 'डाइवोर्स' का नियम बनाया है। सरकार पहले से ही जानती थी कि ऐसा होगा, इसलिए पहले नियम बनता है। अर्थात् हमेशा दवाई का पौधा पहले उगकर तैयार होता है, उसके बाद फिर रोग उत्पन्न होता है। उसी तरह पहले ये नियम बनते हैं, उसके बाद लोगों में ऐसी घटनाएँ होती हैं!
चारित्र संबंधी 'सेफसाइड' अतः जिसे पत्नी के चारित्र संबंधी शांति चाहिए, उसे एकदम