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आप्तवाणी - ९
शंका का है ! सब से बड़ा भूत ! जगत् के कई लोगों को खा चुकी है, निगल चुकी है! इसलिए शंका होने ही मत देना । शंका का जन्म होते ही मार देना । चाहे कैसी भी शंका हो तो जन्म होते ही उसे मार देना, उसकी बेल को बढ़ने मत देना । नहीं तो चैन से बैठने नहीं देगी शंका, वह किसी को चैन से नहीं बैठने देती । शंका ने तो लोगों को मार डाला है। बड़े-बड़े राजाओं को, चक्रवर्तियों को भी शंका ने मार डाला था । उसके जोखिम तो भारी
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यदि लोगों ने कहा हो कि 'यह नालायक इंसान है' तब भी हमें उसे लायक कहना चाहिए क्योंकि शायद वह नालायक न भी हो । यदि उसे नालायक कहोगे तो बहुत दोष लगेगा। सती को यदि वेश्या कह दिया तो भयंकर गुनाह है । उसका फल कितने ही जन्मों तक भुगतते रहना पड़ेगा इसलिए किसी के भी चारित्र के संबंध में बोलना ही मत क्योंकि यदि वह गलत निकला तो ? लोगों के कहने से यदि हम भी कहने लगे तो फिर हमारी क्या कीमत रही ? हम तो किसी को ऐसा कभी भी नहीं कहते और किसी को कहा भी नहीं है । मैं तो हाथ ही नहीं डालता न! उसकी ज़िम्मेदारी कौन ले ? किसी के चारित्र संबंधी शंका नहीं करनी चाहिए। बहुत बड़ा जोखिम है । शंका तो हम कभी भी करते ही नहीं हैं। हम किसलिए जोखिम मोल लें ?
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अंधेरे में, आँखों पर कितना ज़ोर दें ?
प्रश्नकर्ता : लेकिन मन में शंका सहित देखने की ग्रंथि पड़ गई हो तो वहाँ पर कैसा 'एडजस्टमेन्ट' लेना चाहिए ?
दादाश्री : यह जो आपको दिखाई देता है कि इसका चारित्र खराब है, तो क्या पहले ऐसा नहीं था ? यह क्या अचानक उत्पन्न हो गया है ? यानी कि यह जगत् समझ लेने जैसा है, कि यह तो ऐसा ही है । इस काल में चारित्र संबंधी किसी का देखना ही नहीं चाहिए । इस काल में तो सभी जगह ऐसा ही होता है । खुले तौर पर नहीं होता, लेकिन मन तो बिगड़ता ही है। उसमें भी स्त्री चारित्र तो निरा कपट और मोह का