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[२] उद्वेग : शंका : नोंध
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शंका को खत्म कर देता हूँ। शंका यदि हेल्प करती तो मैं ऐसा नहीं कह सकता था। शंका से अगर दस प्रतिशत भी हेल्प होती और नब्बे प्रतिशत नुकसान होता, तब भी मैं ऐसा नहीं कह सकता था। यह तो एक बाल बराबर भी हेल्प नहीं करती और नुकसान बेहद है।
शंका तो ठेठ मरण करवाए यह शंका ही विनाश का कारण है। शंका ने ही मार दिया है लोगों को। शंका होने लगे तो शंका का एन्ड नहीं आता। शंका का एन्ड नहीं आता, इसलिए मनुष्य खत्म हो जाता है।
स्त्रियों को शंका होती है, तब भी लगभग वे भूल जाती हैं लेकिन यदि याद रह गई तो शंका ही उसे मार डालती है और पुरुष तो शंका नहीं हो रही हो, फिर भी उत्पन्न करते हैं। स्त्री शंका रखे, तब फिर वह डाकन कहलाती है। यानी भूत और डाकन दोनों चिपट गए। वे फिर मार ही डालते हैं इंसान को। मैं तो पूछ लेता हूँ कि किस-किस पर शंका होती है ? घर में भी शंका होती है सब पर? अड़ोसी-पड़ोसी, भाई, पत्नी पर, सभी पर शंका होती है? तो फिर कहाँ पर होती है? आप मुझे बताओ तो मैं आपका ठीक कर दूं।
बाकी, यह शंका तो, संक्रामक रोग फैला हुआ है। शंका करनेवाला बहुत दुःखी होता है न! मुश्किल है न! ये तो शंकाशील हुए इसलिए फिर सभी पर शंका होती है और इस दुनिया में शंकाशील और मृत, दोनों एक सरीखे ही हैं। जिस व्यक्ति को सब पर शंका होती है वह शंकाशील। शंकाशील और मृत व्यक्ति, दोनों में फर्क नहीं है। वह मृत समान ही जीवन जीता है।
सुंदर संचालन, वहाँ शंका कैसी? शंका किसी भी चीज़ पर नहीं रखनी चाहिए। शंका तो महादुःख है। उसके जैसा कोई दुःख है ही नहीं।
रात को कभी आपने हांडवा (एक गुजराती व्यंजन) खाया है ?