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[२] उद्वेग : शंका : नोंध
उद्वेग कैसा होता है? कि यहाँ से पटरी पर फिकवा देता है. नदी में गिरवा देता है, वर्ना दूसरा कुछ पी लेता है। उद्वेग अर्थात् वेग ऊपर चला जाता है, अंदर दिमाग़ में चढ़ जाता है और (रेल की पटरी पर) कूद जाता है। नहीं तो खटमल मारने की दवाई खाली कर देता है। 'अरे, शीशी खाली कर दी?' तब वह कहता है, 'हाँ, मैं पी गया।'
उद्वेगवाला इंसान बच नहीं सकता। अरे, उद्वेग हो जाए तब तो यहाँ पर दर्शन करने भी नहीं आने देता। उद्वेग तो बहुत बड़ी चीज़ है। सभी ने तो उद्वेग देखा ही नहीं है न! यह 'ज्ञान' है इसलिए निर्जरा (आत्म प्रदेश में से कर्मों का अलग होना) के रूप में सबकुछ चला जाएगा। अतः उद्वेग से कहें कि 'जितने आने हों उतने आओ। अभी तो जब तक शरीर अच्छा है, तब तक आ जाओ। फिर बुढ़ापे में मत आना।' अभी तो शक्ति है इसलिए अभी आना हो तो आ जाओ, अभी तो धक्का मारकर भी उसे निकाला जा सकता है।
उन परिबलों से दूर चले जाओ प्रश्नकर्ता : तो इस उद्वेग का उपाय क्या है ?
दादाश्री : उसका उपाय तो, किस निमित्त से वह उद्वेग होता है, उसे ढूँढ निकालना पड़ेगा। कोई व्यक्ति नुकसान पहुँचाता रहे और यदि वह व्यक्ति याद आ जाए तो उद्वेग हो जाता है उसे। तो जिस जगह पर उद्वेग हो रहा हो, वहाँ से निकल जाना चाहिए। या फिर जिस चीज़ से उद्वेग होता है, वह बिल्कुल सोने की हो तब भी फेंक देनी चाहिए। वह अपनी सगी नहीं है। जो उद्वेग करवाते हुए आती है, वह अपनी 'रिश्तेदार' नहीं है। शांति देते हुए आए, वही सच्चा। ज़रा सा भी उद्वेग हो वह मोक्ष का मार्ग नहीं है। वेग में ही रहना चाहिए, 'मोशन' में ही।
शायद यदि कोई उद्वेग करवाने वाली चीज़ हो न, जैसे कि एक बेटा नहीं कमा रहा हो, तो हमें समझ जाना चाहिए कि यह उद्वेग करवाने वाली चीज़ है। तो हमें उसके साथ व्यवहार और संबंध बंद कर देना चाहिए, पैसे संबंधी व्यवहार बंद कर देना चाहिए। उससे 'भाई,