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[१] आड़ाई : रूठना : त्रागा
दादाश्री : हाँ, बहुत सारी आड़ाईयाँ थीं। लोगों को दिखती नहीं थीं, लेकिन हमें लगता था कि अंदर आड़ाईयाँ हैं। जबकि लोगों को तो सरल लगता था। वे छोटी-छोटी आड़ाईयाँ, सूक्ष्म आड़ाईयाँ, अहंकारी आडाईयाँ थीं। देह की आड़ाईयाँ नहीं थीं, रूठ जाएँ ऐसी नहीं थीं। अहंकार की आड़ाई ! मुझे खुद को पता चलता था कि इस व्यक्ति के साथ उल्टा चला है। उस व्यक्ति को पता नहीं चलता था।
प्रश्नकर्ता : वह आड़ाई में आता है ?
दादाश्री : तो फिर और क्या? सामने वाले की सही बात हो और हम सबकुछ उल्टा करें तो वह अहंकार, पागलपन ही कहलाएगा न!
प्रश्नकर्ता : तो जो आड़ाई है, वह अहंकार की ही विकृति है
न?
दादाश्री : अहंकार ही। बुद्धि को कोई लेना-देना नहीं है। प्रश्नकर्ता : लेकिन वह अहंकार की ही विकृति है न?
दादाश्री : विकृति ही। विकृति यानी कैसी? लोग पीछे से कहेंगे, 'जाने दो न, ज़रा क्रेक है, उसका नाम ही मत लेना।' अरे, इंजन चल रहा है और हेड कैसे क्रेक हो गया?
वहाँ पर तो हमें सावधान रहना चाहिए प्रश्नकर्ता : कई ऐसे भी होते हैं कि हम ज़रा भी बात करें कि 'भाई, इसका ऐसा....' तो काटने दौड़ते हैं!
दादाश्री : हाँ, होते हैं। लेकिन वह तो हमें बात करने से पहले ही सावधान हो जाना चाहिए। नहीं तो क्या से क्या हो जाएगा! झगड़ा हो जाएगा। क्योंकि हम जो कहना चाहते हैं, वह उस तक पहुँचता नहीं है। इसलिए वह इसे उल्टा समझता है। अपनी भली लागणी (लगाव, भावुकतावाला प्रेम) को वह समझ नहीं पाता। उसे उल्टा समझता है। इसलिए फिर वह सामने बोलता है। तब फिर हमें समझ जाना चाहिए कि मेरी बात इस व्यक्ति तक पहुँच नहीं रही है। मैं जो फोन कर रहा