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[१] आड़ाई : रूठना : त्रागा
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फिर नहीं रूठे कभी भी
प्रश्नकर्ता : नुकसान को तुरंत पहचान लिया, यह तो बनिया बुद्धि हुई न ? !
दादाश्री : उसमें ऐसा कुछ नहीं है । बनिया बुद्धि तो वणिक बुद्धि कहलाती है, और वणिक अर्थात् विचारशील बुद्धि कहलाती है, समझदार बुद्धि कहलाती है। लेकिन नुकसान पहचानने के बाद वापस नुकसान नहीं उठाते न?
रूठने से तो नुकसान होता है। आप एक दिन रूठकर रात को झगड़ा करके नहीं खाओ, तो फिर सब क्या करेंगे ? क्या सभी जागते रहेंगे? समय होने पर सभी सो जाएँगे। यानी कि आपको नुकसान होगा T
क्या रूठना और मनाना फिर से ? और मनाएगा भी कौन फिर ? ये तो भोजन का समय हो तो कहेंगे, 'चाचा, चलिए खाना खाने, खाना खाने चलिए न! वहाँ खाना तैयार हो गया है । सब राह देख रहे हैं ।' तब वे कहते हैं, 'नहीं, अभी खाना खाने नहीं आऊँगा, जाओ ।' तब वे लोग एक-दो बार विनती करते हैं, फिर ? उसके बाद टेबल पर भोजन शुरू तो हो ही जाता है न!
अतः हम फिर कभी भी नहीं रूठे । अभी भी, आज तक हम किसी से नहीं रूठे हैं । पार्टनर से भी हम नहीं रूठे हैं । वे रूठ गए थे कभी लेकिन उन्होंने हममें रिसाल (जिस पर सामने वाले के रूठने का असर होता है) को नहीं देखा, इसलिए वे फिर कभी नहीं रूठे।
'रिसाल' ही रूठे हुए को देखता है
एक व्यक्ति मुझसे कह रहा था कि, 'मेरी वाइफ मुझसे रूठ जाती है।' तब मैंने कहा, ‘वह रूठती है, तो उसे देखनेवाला कौन है ?' 'तू' नहीं है। यह 'रिसाल' है, वह देखता है। कौन देखता है ? ' रिसाल ' है वह देखता है, 'तू' नहीं है ! इसलिए 'तुझे' जानना है कि यह ' रिसाल' देख रहा है। जो 'रिसाल' होता है, वह रूठे हुए को देखता है । आत्मा,