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आप्तवाणी-९
बाकी यह अपनी तरफ से करने जैसी चीज़ नहीं है। हमने तो और जगहों पर भी ऐसे त्रागे देखे हैं। पति-पत्नी की चोटी पकड़कर खींचकर लाता है, मुझसे न्याय करवाने। वह पत्नी भी त्रागा करने वाली और यह पति भी त्रागा करने वाला होता है ! यानी कि ऐसा हमने बहुत देखा है ! दुनिया है तो उसमें हमें क्या-क्या रंग देखने को नहीं मिले होंगे!
अतः त्रागा तो उसे कहते हैं कि सभी लोगों को उनकी इच्छा के बिना भी दब जाना पड़े और हाँ में हाँ मिलानी पड़े। जैसे पुलिस वाले के वश में हो जाते हैं न, वैसे वश में हो जाना पड़ता है। उसे त्रागा कहते
प्रश्नकर्ता : यानी कि ऐसी स्थिति में फँसा देता है उन्हें ? दादाश्री : हाँ, उन्हें शिकंजे में फँसा देता है।
प्रश्नकर्ता : सामनेवाला त्रागा करे तो उसके सामने अपना वर्तन कैसा होना चाहिए?
दादाश्री : हमें तो कहना चाहिए कि भाई ऐसा क्यों कर रहे हो? कौन से सुख के लिए कर रहे हो? यह जो छीनकर लिया हुआ सुख है, वह तेरे पास कितने दिन चलेगा?
प्रश्नकर्ता : फिर भी अगर वह नहीं समझे तो क्या करना चाहिए? दादाश्री : तो खिसक जाना चाहिए। प्रश्नकर्ता : तो फिर उसकी बात मान लेनी चाहिए?
दादाश्री : वह उसकी बात मानने के बराबर ही है। खिसक जाने का तरीका ही वह है न! ऐसे खिसक ही जाना। साँप पीछे पड़े तो साँप भागता है या आपको भागना पड़ता है? आपको खिसक जाना है। उस साँप को तो क्या है? अगर भैंस का भाई अपने पीछे पड़ा हो तो क्या हम ऐसा कहते हैं कि, 'तू मेरे पीछे क्यों पड़ा है ?' ऐसा कहते हो कि, 'मैं तो बड़ौदा का वकील हूँ?' वह तो राजा को भी नहीं छोड़ता। वह तो भैंस का भाई कहलाता है।