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[१] आड़ाई : रूठना : त्रागा
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उस दिन शक्कर-वक्कर, चाय-वाय, सबकुछ एक कर दिया लेकिन वीतराग भाव में! अंदर ज़रा सा भी असर हुए बिना! चंद्रकांत भाई, भाणा भाई सभी बैठे थे। सभी से कहा, 'सीखना घर पर।' फिर दूसरे दिन उसका फल क्या आया? वे पड़ोसी बल्कि हीरा बा को समझाने लगे कि, 'भाई को दुःख हो वैसा मत करना। कोई आए तो भले ही आए। आप इस झंझट में नहीं पड़ना।' बल्कि अब वे उल्टा ही सिखाने लगे, क्योंकि उनके मन में डर बैठ गया कि 'अब यदि कुछ भी होगा तो हमारे सिर पर ही आएगा। इसलिए अब हमें सावधान रहना है।' मैंने काम ही ऐसा किया था कि ये लोग फिर से ऐसा करना ही भूल जाएँ। उसके बाद फिर ऐसा नहीं करना पड़ा, उसके बाद कभी भी नहीं। इतना इलाज किया था। अभी तक याद होगा उन्हें। वह तो उनका दिमाग़ चढ़ गया था, कभी भी नहीं चढ़ता, उन लोगों ने सिखा रखा था सब, कि ऐसा ज़रा ज़्यादा करोगी तो सभी लड़कियाँ चली जाएँगी, फिर नहीं आएंगी। _ 'ज्ञानी' कभी-कभी ही अवतरित होते हैं। और बेचारी लड़कियाँ दर्शन करने तो आएँगी न! उन्हें अशांति रहती है इसलिए आती हैं न!
चैन से दर्शन तो करने दो लोगों को। उन्होंने यहाँ तक सिखाया था कि 'दादा शादी कर लेंगे इन लड़कियों से।' ऐसा भी सिखाया था कि, 'ये लड़कियाँ दादा को ले जाएँगी।' अरे, ऐसा कहीं होता होगा? कितने साल का, मैं बूढ़ा हो चुका इंसान! तो ऐसा कैसा सिखाया ! लेकिन उनका क्या दोष बेचारी का? हीरा बा को ऐसा भी समझ में आता था कि 'यह मेरी भूल है।' ये लड़कियाँ सत्संग में आती थीं न! और उन्हें खुद को सौ प्रतिशत विश्वास था कि ये (दादा) तो मोरल और सिन्सियर हैं लेकिन लोगों में बुरा दिखता था, इसलिए ऐसा कहा था कि 'आप छोड़ दीजिए यह।' तब क्या कहीं छोड़ने से छूट सकता है? यह तो 'व्यवस्थित' है! और वे तो नासमझी में कह रही थीं। इस तरह कहीं कुछ होता होगा? और क्या यह रेल्वेलाइन उखाड़ दें? तब हमें कुछ रास्ता तो निकालना पड़ेगा न? तब फिर उस कॉर्क (डाट) से नहीं चल सकता था। उसके लिए तो पेच वाले कॉर्क की ज़रूरत थी। पेचवाला कॉर्क लगा देने से उखड़ तो नहीं जाएगा न!