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आप्तवाणी - ९
प्रश्नकर्ता : कोई पुरुष त्रागा करे कि 'मैं भाग जाऊँगा, मैं आत्महत्या कर लूँगा, मैं ऐसा कर लूँगा ।' तो वास्तव में ऐसा मान लेना है कि वह करेगा ही ? वह कर लेता है क्या ?
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दादाश्री : घबराना नहीं है लेकिन फिर सावधान रहना पड़ेगा। शायद बाद में वह ऐसा कर भी दे। ज़्यादातर तो त्रागा होता है, इसलिए ऐसा करेगा नहीं लेकिन फिर भी सावधान रहना अच्छा है I
संसार व्यवहार में त्रागे वाले लोग बहुत होते हैं। व्यवहार में यानी अपने घर में, मतलब ऐसे त्रागेवालों की तो बात को स्पर्श ही मत होने देना। नहीं तो मर गए समझो। जिंदगीभर मैं तो त्रागा से बचा हूँ । मेरे पास एक ऐसा 'सिस्टम' था, जिससे मैं त्रागा से हमेशा बच जाता था । काफी कुछ भाग तो, जगत् तो त्रागा से ही दब चुका है !
प्रश्नकर्ता : सामनेवाला व्यक्ति चाहे जितने त्रागे करे तो ऐसे में खुद को कैसे रहना चाहिए ?
दादाश्री : आपको उसमें क्या करना है ? देखते रहना है । वह त्रागा कर रहा हो न, तो हमें नया नाटक देखने को मिला। वर्ना ऐसा नाटक देखने को नहीं मिलता ! अगर हम नाटक वाले से कहें कि ' त्रागा करो,' तो क्या वह करेगा ? ! अतः हमें उस त्रागा करने वाले से कह देना है कि, तुझे जितने त्रागे करने हो उतने कर न !
बचने का ‘एडजस्टमेन्ट'
हमने त्रागे बहुत नहीं देखे थे लेकिन जितने देखे थे उनसे त्रस्त हो गए थे
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प्रश्नकर्ता : तो कोई आपके सामने त्रागा करे तो आपको क्या
होता है ?
दादाश्री : मैं तुरंत समझ जाता हूँ कि यह त्रागा करने लगा है। प्रश्नकर्ता : तब क्या करते हैं आप ?