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[१] आड़ाई : रूठना : त्रागा
सरल हैं, इसलिए उनका राजीपा प्राप्त करना मुश्किल है। उनका एक घंटे का राजीपा तो अपना काम ही बना दे। मैं कहता हूँ न सभी से, मैंने सभी को गारन्टी दी है कि एक घंटे में मेरे जैसा पद दे सकता हूँ, जिसे चाहिए उसे, लेकिन ऐसी सरलता लानी मुश्किल है न!
ज्ञानीपुरुष अत्यंत सरल हैं, इसलिए राजीपा नहीं मिलता। यदि ज्ञानीपुरुष असरल होते न, तो राजीपा मिल जाता। जबकि ये तो अत्यंत सरल हैं। अब सरल को किस तरह खुश करें? खुद सरल हो जाएँगे तो वे खुश होंगे। हाँ, उस लेवल तक कोई नीचे उतरोगे तो खुश हो जाएँगे। नहीं तो कैसे खुश होंगे वे?! वर्ना ज्ञानीपुरुष का एक घंटे का राजीपा तो पूरे ब्रह्मांड का मालिक बना दे, इतना अधिक राजीपा होता है। ज्ञानीपुरुष, जिन्हें इस वर्ल्ड में कोई चीज़ नहीं चाहिए, वे क्या नहीं दे सकते? लेकिन वह राजीपा प्राप्त करना आसान नहीं है। उसके लिए तो सरल बनना पड़ेगा। ज्ञानीपुरुष तो सरल होते हैं, छोटा डेढ़ साल का बालक हो न, उससे भी अधिक सरल होते हैं। अब सरल के सामने हम असरल रहें तो फिर राजीपा कैसे मिलेगा? 'लेवल' चाहिए इसमें! आपको समझ में आया न यह सब?
नाटकीय अहंकार प्रश्नकर्ता : आप्तसूत्र में है कि 'बहते हुए अहंकार में आपत्ति नहीं है, लेकिन अहंकार को थोड़ा भी पकड़ा तो वह आड़ाई कहलाती है।' अब वह बहता हुआ अहंकार कौन सा अहंकार है?
दादाश्री : इन स्त्रियों का अहंकार देखोगे, तो वह सारा बहता हुआ अहंकार है। अभी मैं कढ़ी बना रही हूँ, अभी यों सब्जी बना दूंगी, ऐसा कर दूँगी', ऐसा सब बोलती है, वह सारा अहंकार है लेकिन वह बहता हुआ! और पुरुष तो अहंकार को पकड़कर रखते हैं। 'मैंने ऐसा कहा था और तूने ऐसा किया?' वह आड़ाई है।
प्रश्नकर्ता : यानी बहता हुआ अहंकार नाटकीय अहंकार कहलाता है? दादाश्री : वह नाटकीय अहंकार ही है। बहते हुए अहंकार में