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[१] आड़ाई : रूठना : त्रागा
परेशान करते हैं, ज्ञान होने के बावजूद भी। ऐसा माल है, वह नहीं होना चाहिए लेकिन अब मार्केट में से भरकर लाया है, उसे मना नहीं किया जा सकता न हमसे? जो भरा हुआ माल है, जो पूरण हो चुका है उसका गलन होगा। नया पूरण नहीं होनेवाला। पुराना गलन हो रहा है। जो पुराना पूरण किया है वह गलन हो रहा है और वह अपना ही पूरण किया हुआ है इसलिए आपको 'देख' 'देख कर और शुद्ध कर-करके 'लेट-गो' करना है, उसका शुद्धिकरण करके लेट-गो करना है। फिर वह चाहे जैसा भी हो। फिर भी ऐसा तो रहना ही चाहिए न कि किस प्रकार से यह सारा व्यवहार सही निकले?
'टेढ़ा', वह 'खुद' नहीं है मैंने तो आप सभी को सीधा कर दिया है न! नहीं किया? क्योंकि टेढ़ा कौन था? 'चंदूभाई।' अब 'आप' तो चंदूभाई नहीं हो। तो 'आपको' कह देना है कि 'यह मैं नहीं हूँ। मैं तो यह शुद्धात्मा हूँ।' तो बोलो, आपकी आड़ाई चली गई न? आपको कैसा लगता है ? ____ यानी इस अक्रम विज्ञान ने सभी गृहस्थियों को सीधा कर दिया। सीधा होने के लिए साधु बनने की ज़रूरत है। यदि गृहस्थी सीधे हो गए तो उनका निबेड़ा आ जाएगा और (क्रमिक मार्ग में) सीधे होने के लिए साधुपना करना है। खुद को पता चलता है कि 'ये 'चंदूभाई' टेढ़े हैं और 'मैं' सीधा।' यानी 'आप तो साधु हुए बगैर ही सीधे हो गए न! अक्रम विज्ञान तो अच्छा है न!'
फिर भी लोग हमें क्या कहते हैं ? 'ये चंदूभाई जैसे थे वैसे के वैसे ही हैं लेकिन हमें वह नहीं देखना है। वहाँ लोगों से हम क्या कहते हैं ? 'आपको जो चंदूभाई दिखाई देते हैं, वे अलग हैं और मुझे जो दिखाई देते हैं वे अलग हैं।' लोग कमियाँ निकालते हैं या नहीं निकालते? कि ये लोग 'दादा' के पीछे पड़े हैं और अभी तक वैसे के वैसे ही हैं। कहते हैं या नहीं कहते ऐसा? तो वहाँ पर 'वह' टेढ़ा है, 'आप' नहीं हो। लेकिन आप वह बात सुनते हो, और सुनकर फिर घर पर जाकर 'आप'