________________
१८
आप्तवाणी-९
दादाश्री : आड़ाईयाँ अलग-अलग प्रकार की होती हैं। तो क्या सब्जियाँ भी एक ही प्रकार की होती हैं सारी? सब्जियाँ भी अलग-अलग प्रकार की, आड़ाई भी अलग-अलग प्रकार की, कढ़ी का स्वाद भी अलगअलग प्रकार का, हाइट भी सभी की अलग-अलग प्रकार की, रंग भी सभी के अलग प्रकार के। सबकुछ अलग-अलग प्रकार का ही है न!
यह 'ज्ञान' मिलने पर आड़ाई चली जाती है और किसी में आडाई रह गई हो तो वह दिखाई देती है न! उनकी खुद की इच्छा आड़ाई को संभाले रखने की नहीं होती। संभाले रखने की इच्छा नहीं होती है कि लाओ बैंक के लॉकर में रख आएँ, ऐसा नहीं होता।
__ वे आड़ाईयाँ, अंत वाली प्रश्नकर्ता : हम तय करते हैं फिर भी एडजस्ट नहीं हो पाते, उसके पीछे क्या कारण है ? या तो हमारी आड़ाई है या फिर अपना 'व्यवस्थित' ही ऐसा है, इसलिए ये प्रयत्न सफल नहीं होते?
दादाश्री : नहीं, आड़ाईयाँ पड़ी हैं इसलिए। सभी आड़ाईयाँ ही हैं। जिसकी आड़ाईयाँ गई, फिर उसकी सभी गुत्थियाँ गई। आपकी
आड़ाईयाँ जाने लगी हैं, वे एक दिन खत्म हो जाएँगी क्योंकि टंकी का नल खुला छोड़ दिया है और नया भराव बंद है इसलिए टंकी एक दिन खाली हो जाएगी। अब आड़ाईयों के कारखाने में नया उत्पादन नहीं होता और पुरानी आड़ाईयाँ निकलती रहती हैं। एक आड़ाई आती है और उसका अंत आता है। फिर वापस दूसरी आड़ाई आती है। वह गई कि वापस फिर तीसरी आड़ाई आती है। जितनी आड़ाईयाँ आएँगी, उतनी फिर चली जाएँगी।
सरल फिर भी सूक्ष्म आड़ाईयाँ प्रश्नकर्ता : आप्तसूत्र में एक वाक्य आता है कि, 'ज्ञान होने से पहले हमने आड़ाईयों का पूरा समुद्र पार किया। यानी एक-एक आड़ाई को हमने खत्म किया, तब यह ज्ञान प्रकट हुआ।'