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आप्तवाणी-९
तो वह भी उसके सामने अकड़ता है, लेकिन अगर वहाँ पर भी झुके तो वह मोक्ष में जाने की निशानी है। फिर, निर्लोभता होती है। लोभ ने ही पकड़कर रखा हुआ है न लोगों को! इसलिए भगवान ने कहा है कि 'यात्रा कर आना, ऐसा करके आना और पैसे खर्च कर देना।' यानी रुपये खर्च हो तब वह लोभ की गाँठ कम हो जाएगी। नहीं तो निन्यानवे के धक्के की तरह लोभ बढ़ता जाएगा। अर्थात् ऐसा भाव रहना चाहिए कि 'इस दुनिया में किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है।' अर्थात् ये सभी गुण
आ जाने चाहिए। जब वे सारे भूत निकल जाएँगे और सरल बन जाओगे तब मोक्ष होगा।
बचपन की आड़ाईयाँ हमारे समय में कहते थे कि,
'दुनिया दिवानी कहेवाशे रे, भुंडी भीतोमां भटकाशे। पापे य एनुं ज्यारे प्रगट थाशे, त्यारे भूवा-जति घेर जाशे।'
जब उसका पाप प्रकट होगा, तब झाड़-फूंक करने वाले और यति के वहाँ पर जाकर धागे वगैरह बंधवाएगा। यानी जब उसका पाप प्रकट होता है, उसके बाद वह झाड़-फूंक करने वाले को ढूँढता है, यति ढूँढता है। ऐसा किसी कवि ने कहा है।
प्रश्नकर्ता : दादा, यह पद कब पढ़ा था आपने?
दादाश्री : वह तो पचपन साल पहले की बात है। वह बहुत पुरानी नहीं है। दो-पाँच हज़ार साल पहले की बात नहीं है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन यह सब आपको याद कैसे रहता है ?
दादाश्री : हमें कुछ भी याद नहीं रहता। आज सोमवार है या मंगलवार, वह भी हमें याद नहीं आता न!
प्रश्नकर्ता : तो यह सब कहाँ से निकला, दादा? दादाश्री : यह तो हमें यों दिखाई देता है ! इस ओर घूमे कि तुरंत