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[१] आड़ाई : रूठना : त्रागा
जाता है। गर्भ में भी टेढ़ा। वह जहाँ जाए वहाँ टेढ़ा! और जो सीधा होता है, वह जहाँ जाए वहाँ सीधा चलता है।
प्रश्नकर्ता : हिन्दुस्तान के लोगों में आड़ाई है और मोक्ष के अधिकारी भी वे ही हैं।
दादाश्री : ऐसा है न, जो टेढ़े हैं, वही मोक्ष में जाते हैं और आड़ाई तो, समझदार करता है या नासमझ? समझदार ही करता है न, आड़ाईयाँ ?
प्रश्नकर्ता : लेकिन वह उल्टी समझ है न, दादा?
दादाश्री : वह तो इसलिए कि समझ में रुकावट है! और वहाँ फॉरेन में आड़ाई नहीं है। उनमें तो जैसा होता है, सीधे वैसी ही बात।
प्रश्नकर्ता : 'समझ में रुकावट है', वह स्पष्ट कीजिए न, दादा।
दादाश्री : अपनी बढ़ी हुई समझ रुक गई है। अपनी समझ हेल्प नहीं करे तो समझ उल्टे रास्ते चलेगी।
आडाई जाए तो हल आ जाए। वास्तव में आड़ाई को अहंकार माना जाता है। वह अहंकार की ही शाखा है।
अहंकार के आधार पर आड़ाई पसंद है आपको? प्रश्नकर्ता : पसंद तो नहीं है, लेकिन जाती ही नहीं।
दादाश्री : वह तो मैं निकाल दूंगा। आड़ाईयाँ खड़ी होती हैं, जाती नहीं हैं, उसका आपको भान होता है न? वही जागृति है। वर्ना ऐसा भान भी नहीं हो पाता न! 'आड़ाईयाँ खड़ी होती हैं , ऐसा भान ही कहाँ है ?! किसी को यदि हम कहें कि 'ऐसी आड़ाई करते हो?' तब वह कहेगा, 'आप ही टेढ़े हो।' पलटकर तुरंत ऐसा कहेगा या नहीं? 'बॉस' ऐसा कहे, 'आप आडाई करते हो', तो मुँह पर जवाब नहीं देता, 'बॉस' है इसलिए। लेकिन अंदर ही अंदर मन में कहे बगैर नहीं रहता। क्योंकि