Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
साहब भण्डारी के पुत्र थे। आपकी वैराग्यभावना का श्रेय महासती श्री सिरेकँवर जी को है। आचार्य श्री जी के भीलवाड़ा चातुर्मास में आप उनकी सेवा में रहे तथा वि० सं० २००८, मार्गशीर्ष शुक्ला पंचमी को आपने संयम ग्रहण किया था। आपकी अध्ययन अच्छी अभिरुचि थी।
(८) श्री चन्द्रऋषि जी महाराज-आप कड़ा निवासी श्री चांदमल जी के नाम से प्रसिद्ध थे । आपके पिता का नाम श्री चुन्नीलाल जी तथा माता का नाम शक्करबाई था। आपको अहमदनगर में
जी श्री उज्ज्वल कुमारी जी के सद्पदेशों से वैराग्य उत्पन्न हआ। वि० सं० २०१० में आचार्य श्री का चातुर्मास जोधपुर में था। उसी वर्ष आपने ज्ञान पंचमी को आचार्य श्री जी के सानिध्य में चारित्रधर्म ग्रहण किया।
आप अत्यन्त सेवाभावी तथा स्वाध्यायप्रेमी सन्त हैं। आपको सब भगत जी के नाम से ही पुकारते हैं।
(६) श्री कुन्दनऋषि जी महाराज-आप मिरी ग्राम निवासी श्री चन्दनमल जी मेहेर के पूत्र हैं। गृहस्थावस्था में आपका नाम श्री मनसुखलाल था। सौभाग्यवश आचार्य श्री का मिरी गाँव में शुभागमन हुआ और आपको भी आचार्य श्री जी के प्रवचन सुनने का लाभ मिला।
आपकी वैराग्य भावना जब बलवती हुई तो आपके परिवार वालों को आज्ञा प्रदान करनी पड़ी। आप दीक्षा से पूर्व तीन वर्ष तक आचार्य जी की सेवा में रहकर धार्मिक अध्ययन करते रहे। तत्पश्चात् वि० सं० २०१६, वैशाख शुक्ला षष्ठी को अपनी जन्मभूमि में ही आप स्वनामधन्य आचार्य श्री जी के पदगामी बने । आपका सहज और सरल व्यक्तित्व अति सराहनीय है। आपमें सेवाभावना, मिलनसारिता एवं गुरुभक्ति पर्याप्त मात्रा में है। श्री आचार्य श्री जी के प्रवचनों को जनजन तक पहुँचाने का श्रेय आपको ही दिया जा सकता है।
(१०) श्री विजयऋषि जी महाराज-- आपका जन्म मध्यप्रदेश के गोदाला नामक ग्राम में हुआ। आपने वि० सं० २०२१ के चातुर्मास में आचार्य सम्राट के चरणों में संयमपथ का अवलम्बन लिया। आपकी अपने गुरुदेव में अनन्य भक्ति है तथा आप अध्ययन में भी काफी रुचि रखते हैं।
(११) श्री धनऋषि जी महाराज-अवस्था में आप वृद्ध हैं। आपकी जन्मभूमि कर्माला है। पिता का नाम श्री मोहनलाल जी कटारिया तथा माता का नाम लगड़ी बाई था । वि० सं० २०२५ के जम्म चातुर्मास में आपने आचार्य श्री के सान्निध्य में दीक्षा ग्रहण की। आपकी सेवा एवं तपस्या में अच्छी रुचि है।
(१२) श्री रतनमुनि जी महाराज-आपने मरुधरा के पंडितरत्नमुनि श्री मंगलचन्द्र जी महाराज के चरणों में भागवती दीक्षा ग्रहण की थी। आजकल आप श्रद्धेय आचार्य श्री जी की आज्ञा में विचरण करते हैं। आप एक अध्ययनशील, प्रतिभा-सम्पन्न एवं अच्छे व्याख्याता मनि हैं। आपके पिताजी का नाम श्री खिलूराम जी खन्ना एवं माता का नाम श्यामादेवी है। आपकी जन्मभूमि मुल्तान (पंजाब) है। आप से समाज को बड़ी-बड़ी आशाएँ हैं।
इस प्रकार चरितनायक आचार्य श्री जी का शिष्य समुदाय भो "शालि को रूंख शालि को परिवार" इस कहावत को चरितार्थ करता है तथा अपनी संयम साधन में रमण करता है। ऐसे सन्त समूह को प्रत्येक श्रद्धालु भक्त अपार आस्था लिए हुए अपना उत्तमांग झुकाता है। किसी कवि ने कहा भी है
संत मिल्यां एता रले काल झाल जमचोट ।
शीश नमाया ढह पड़े लाख पाप की पोट ।। कविता के भाव विज्ञजन समझ ही गये होंगे कि संत-समागम से किस प्रकार आधि, व्याधि एवं
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