Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
View full book text
________________
Jain Education International
आनन्द पंचक अभिनंदन
कुंडलियाँ
ऋषि कुल में शशि सम सरस, निवड्यौ नामी संत । आ सारा अवलोक लो, कोमल कविता कंथ । कोमल कविता कंथ, तंत की बातें छानी । लघुवय लीनी दीख, ज्ञान पढ़ हो गये ज्ञानी । जानी नहीं माता-पिता, जान्यो नहीं समाज । इसड़ो उन्नत होवसी, आनन्द ऋषी महाराज ॥३॥ कवित्त
देवीचन्द को दुलारो, प्राणी मात्र को सुप्यारो न्याय मग छान नारो, स्हारो मुनि संघ को । कई भाषा जाननारो. स्याद्वाद रेषवारो तिरण तारण हारो, जीते कर्म जंग को । क्रोध मान लोभ छल, कारो कारो पाप सारो जिन से किनारो कर मीठो-मीठो बोल नारो, "सुकन" हमारो गणी,
राज्यो ज्ञान रंग को । भक्त मन चोर नारो राजे शुभ अंग को || ४ ||
दोहा
इस अभिनन्दन के समय, श्रद्धा सुम पद पद्म ।
"सुकन" समर्पित कर चहै, सदानन्द गुण सद्म ॥ ५ ॥
शत शत वंदन !
जैन-जगत के पूज्य महत्तम । वंदनीय आचार्य सुधोपोम ॥
श्री श्रीयुत आनन्द ऋषीश्वर । धन्य धन्य हो तुम योगीश्वर ! श्री चरणों में शत शत वंदन । करियो स्वीकृत यह अभिनन्दन ॥
*
- विनय मुनि 'विधु' [ स्वामी श्री व्रज- मधुकर मुनि-सुशिष्य ]
You
८३
For Private & Personal Use Only
乖
श्री आनन्दत्र ग्रन्थ श्री आनन्द ग्रन्थ
www.
www.jainelibrary.org