Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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जैन रहस्यवाद बनाम अध्यात्मवाद
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का प्रयोग हुआ है । श्रीमद्भगवद्गीता और उपनिषदों में रहस्य शब्द का विशेष प्रयोग दिखाई देता है। वहां एकान्त अर्थ में "योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थित: ( ६.१०) तथा मर्म अर्थ में "भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदमुत्तनम्" और गुह्यार्थ में " गुह्याद् गुह्यतरं ( १८.६३) परमगुह्य (१८.३८) आदि की अभिव्यक्ति हुई है । इसी रहस्य को आध्यात्मिक क्षेत्र में अनुभूति के रूप में प्रस्फुटित किया गया है और काव्यात्मक क्षेत्र में रस के रूप में । रहस्य के अन्त में दोनों क्षेत्रों के मर्मज्ञों ने स्वानुभूति को चिदानन्द चैतन्य अथवा ब्रह्मानन्द सहोदर नाम समर्पित किया है ।
साधक और कवि की रहस्यभावना
साधक और कवि की रहस्य - भावना में किञ्चित् अन्तर है । साधक रहस्य का स्वयं साक्षात्कार करता है, पर कवि उसकी भावात्मक भावना करता है। यह आवश्यक नहीं कि योगी कवि नहीं हो सकता अथवा कवि योगी नहीं हो सकता । काव्य का सम्बन्ध भाव से विशेष होता है। और साधक की रहस्यानुभूति भी वहीं से जुड़ी हुई है । अतः यह प्रायः देखा जाता है कि उक्त दोनों व्यक्तित्व समरस होकर आध्यात्मिक साधना करते रहे हैं । यही कारण है कि योगी कवि हुआ है और कवि योगी हुआ है। दोनों ने रहस्यभावना की भावात्मक अनुभूति को अपना स्वर दिया है ।
प्रस्तुत निबन्ध में हमने उक्त दोनों व्यक्तित्वों की सजगता को परखने का प्रयत्न किया है । इसलिए रहस्यवाद के स्थान पर हमने रहस्यभावना शब्द को अधिक उपयुक्त माना है । भावना अनुभूतिपरक होती है और वाद का सम्बन्ध अभिव्यक्ति और दर्शन से अधिक होता है। अनुभूति असीमित होती है और वाद किसी धर्म, सम्प्रदाय अथवा साहित्य से सम्बद्ध होकर ससीमित हो जाता है । इस अन्तर के होते हुए भी रहस्य - भावना का सम्बन्ध अन्ततोगत्वा चूंकि किसी साधनाविशेष से सम्बद्ध रहता है इसलिए वह भी कालान्तर में अनुभूति के माध्यम से एक वाद बन जाता है ।
रहस्यवाद : अभिव्यक्ति और प्रयोग
रहस्यवाद को अंग्रेजी में Mysticism कहा जाता है । यह शब्द ग्रीक के Mystikas शब्द से उद्भूत हुआ है, जिसका अर्थ है - किसी गुह्य ज्ञान की प्राप्ति करने के लिए दीक्षित शिष्य । उस दीक्षित शिष्य द्वारा व्यक्त उद्गार अथवा सिद्धान्त को Mystesism कहा गया है । इस शब्द का प्रयोग अंग्रेजी साहित्य में सन् १६०० के आसपास हुआ है ।
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जहाँ तक हिन्दी साहित्य का प्रश्न है, रहस्यवाद शब्द का प्रयोग उसमें पाश्चात्य साहित्य के इसी अंग्रेजी शब्द Mysticism के रूपान्तर के रूप में प्रयुक्त हुआ । इसका सर्वप्रथम प्रयोग आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने सन् १९२७ में सरस्वती पत्रिका के मई अंक में किया था । लगभग इसी समय अवध उपाध्याय तथा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भी इस शब्द का उपयोग किया था । जैसा ऊपर हम देख चुके हैं प्राचीनकाल में 'रहस्य' जैसे शब्द साहित्यिक क्षेत्र में आ चुके थे पर उसके पीछे अधिकांशतः अध्यात्मरस में सिक्त साधनापथ जुड़ा हुआ था । उसकी अभिव्यक्ति
४ गुह्य रहस्यं
।
- अभिधान चिन्तामणि कोश, ७४२ ।
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The concise Oxford Dictionary, p. 782. (word-Mystic.) Oxford 1961. अनन्देल का अंग्रेजी शब्दकोश भी देखिए ।
Bonquet, p.c. Comperative Religion ( Petiean series, 1953) p. 286.
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डॉ
आचार्य प्रव आचार्य प्रव अभिनन्दन
श्री आनन्दत्र
श्री आनन्दत्र
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